पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९७

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आल्हखण्ड १६२ ब्रह्मा सूरज दोऊ ठाकुर रणमाँ घोर कीन घमसान ॥ बड़ा लडैया गजराजा यहु नाहर समरधनी मैदान ६६ कांतामलहू आँगन लड़िके अपने तजी प्राण की आश ॥ । सातसै क्षत्री आँगन लड़िके तुरतै भये तहाँपर नाश ७० कांतामल औ फिरि सूरज की आल्हा मुशकै लीन बँधाय॥ कठिन लड़ाई भै माड़ोतर सातो भाँवरि लीन डराय ७१ तव गजराजा पाँयन परिकै सब को बार बार शिरनाय ॥ हारि देखिकै अपने दिशिकी कन्यादान दीनफिरिमाय ७२ ऊदन वोले फिरि राजा ते मानों कही विसेनेराय ।। आल्हा गर्जी हैं दायज के मलखेदुलहिनिकोललचाय७३ भातके गर्जी हम सब ठाकुर सो अब बेगि होय तग्यार॥ छोरिकै मुशकै दोउ पुत्रन की चलिमे मोहबे के सरदार ७४ ई सव पहुंचे जनवासे में माहिल तुरत भयो तैयार ॥ आयके पहुंच्यो झुन्नागढ़ माँ राजै कौन्यो रामजुहार ७१ राजा बोले तत्र माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार। ॥ बड़े लडैया मुहवे वाले नाहर कठिन करें तलवार ७५ माहिल बोले तव राजा ते मानों कही विसेनेराय॥ भातखान को अब बुलवावो चौका मूड़ लेउ कटवाय ७७ यह मन भाई महराजा के लाग्यो भात होन तय्यार। विदा मॉगिकै महराजा ते चलिभा उरई का सरदार ७ राजा चलिमे जनवासे में आल्हा पास पहूँचे जाय। त्यार भातहे मारे महलन में जल्दी चलो बनाफरराय ५ कहा मानिके हम लुच्चनको तुञ्चन सरिस कीन सब काम। नग मो दूनी अब राखें ना सोऊ जान रहे श्रीराम ।