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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९७

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आल्हखण्ड। १९२

ब्रह्मा सूरज दोऊ ठाकुर रणमाँ घोर कीन घमसान॥
बड़ा लड़ैया गजराजा यहु नाहर समरधनी मैदान ६९
कांतामलहू आँगन लड़िकै अपने तजी प्राण की आश॥
सातसै क्षत्री आँगन लड़िकै तुरतै भये तहाँपर नाश ७०
कांतामल औ फिरि सूरज की आल्हा मुशकै लीन बँधाय॥
कठिन लड़ाई भै माड़ोतर सातो भाँवरि लीन डराय ७१
तब गजराजा पाँयन परिकै सब को बार बार शिरनाय॥
हारि देखिकै अपने दिशिकी कन्यादान दीनफिरिआय ७२
ऊदन बोले फिरि राजा ते मानों कही बिसेनेराय॥
आल्हा गर्जी हैं दायज के मलखेदुलहिनिकोललचायॅ ७३
भातके गर्जी हम सब ठाकुर सो अब बेगि होय तग्यार॥
छोरिकै मुशकै दोउ पुत्रन की चलिभे मोहबे के सरदार ७४
ई सब पहुंचे जनवासे में माहिल तुरत भयो तैयार॥
आयके पहुंच्यो झुन्नागढ़ माँ राजै कौन्यो रामजुहार ७५
राजा बोले तब माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार॥
बड़े लड़ैया मुहवे वाले नाहर कठिन करैं तलवार ७६
माहिल बोले तब राजा ते मानों कही बिसेनेराय॥
भातखान को अब बुलवावो चौका मूड़ लेउ कटवाय ७७
यह मन भाई महराजा के लाग्यो भात होन तय्यार॥
विदा मॉगिकै महराजा ते चलिभा उरई का सरदार ७८
राजा चलिभे जनवासे में आल्हा पास पहूँचे जाय॥
त्यार भातहै मोरे महलन में जल्दी चलो बनाफरराय ७९
कहा सुनिकै हम लुच्चनको तुच्चन सरिस कीन सब काम॥
तुम सों दूजी अब राखैं ना सोऊ जान रहे श्रीराम ८०