धन्य सराही त्यहि ठाकुर को तुम सों मिलैं नात समरस्त॥
क्यहु अभिलाषा कछु बाकीना ह्वैगे सबै ज्वान अब पस्त ८१
बातैं सुनिकै ये राजा की आल्हा हुकुम दीन फर्माय॥
बारह ठाकुर गे भौंरिन में तेई फेरि सजे सब भाय ८२
भाला बरची औ ढालै लै हाथ म लई सबन तलवार॥
नाई बारी गडुवा लीन्हेनि चलिभे सबै शूर सरदार ८३
मलखे बैठे फिरि पलकी में बाजन सबै रहे हहराय॥
एकपहर के फिरि अर्सा में राजा भवन पहूंचे जाय ८४
नाई आवा फिरि भीतर सों आल्है शीश नवावा आय॥
जल्दी चलिये अब भोजनको करिये न देर बनाफरराय ८५
इतना सुनिकै सब क्षत्रिनने अपने कपड़ा धरे उतार॥
ढालै धरिकै गैंडावाली हाथ म लई नाँगि तलवार ८६
तब गजराजा कह आल्हा सों ठाकुर मोहबे के सरदार॥
हमरे कुलकी यह रीती ना भोजन करत गहै हथियार ८७
एकरीति नहिं सब देशन में अपने कुला कुला व्यवहार॥
बातैं सुनिकै ये राजा की सबहिन धराफेरि हथियार ८८
चलिकै ठाकुर गे चौका में पीढ़न उपर बैठिगे जाय॥
षटरस व्यंजन सब परसेगे उत्तम भातगयो फिरिआय ८९
लक्ष्मी बोलत परलै ह्वैगै आये सबै शूर समुदाय॥
जान न पावैं मुहबेवाले सबका कटा देव करवाय ९०
बातैं सुनिकै गजराजा की आल्हा गये सनाकाखाय॥
गडुवा लैकै ऊदन ठाढ़े मलखे पाटा लीन उठाय ९१
बड़ी मारु भै फिरि चौका में अद्भुत समर कहा ना जाय॥
पाटा लागै ज्यहि ठाकुर के घुर्मित गिरै मूर्च्छा खाय ९२
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मलखानका बिवाह। १९३
