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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९९

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आल्हखण्ड। १९४

को गति बर्णै तहँ ऊदन की गडुवन मारि कीन खरिहान॥
लाखनि ब्रह्मा के मुर्चा में सम्मुख लड़ै न एकोज्वान ९३
कांतामल औ सूरज ठाकुर दोऊ हाथ करैं तलवार॥
बड़े लड़ैया मोहबे वाले ठाकुर समरधनी सरदार ९४
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के चौका बही रक्तकी धार ९५
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय॥
तैसे ठाकुर मोहबे वाले मारिकैदीन्हो समरसोवाय ९६
बहुतक जूझे झुन्नागढ़ के रानी राजै लीन बुलाय॥
रानी बोली फिरि राजा सों मानों कही बिसेनेराय ९७
बड़े लड़ैया मोहबे वाले ओ महराजा बात बनाव॥
लड़िकैजितिहौनहिंआल्हासों तुम करि थाके सबै उपाव ९८
कहा न मानो तुम माहिल को नहिं सब जैहैं काम नशाय॥
हॅसी खुशी सों बेटी पठवो याहि में भला परै दिखराय ९९
बातैं सुनिके ये रानी की राजा समर पहूँचा आय॥
भुजा उठाये फिरि बोलत भा अबहीं मारु बन्द ह्वैजाय १००
मारु बन्द भै दोऊ दिशिसों राजा बोला बचन सुनाय॥
बिदा करावो सब बेटी को नहिं कछु देर बनाफरराय १०१
बातैं सुनि गजराजा की द्वारेगये बराती आय॥
कपड़ा पहिरे अपने अपने सीताराम चरण मनध्याय १०२
हुकुम लगायो ह्याँ गजराजा बेटी बेगि होय तय्यार॥
हुकुम पायकै महराजा को सोलह करनलागि शृंगार १०३

सवैया॥


मज्जन चीर औ कुण्डल अंजन नाक में गौक्तिक वेश सवाँरी।