कंचुँकि ओ क्षुद्रावलि कंकण कुसुमित अम्बर चन्दन धारी॥
खायकै पान औ धारिमणीनको हार औ नूपुरकी झनकारी।
सेंदुर भाल बिशाललखे ललिते मनलज्जित मन्मथनारी१०४
ग्वरिग्वरिबहियाँ हरिहरिचुरियाँ सो मनिहारिनि दी पहिराय॥
पहिरि मुँदरियाँ अठो अँगुरियाँ ऊपर छल्ला लये दबाय १०५
पहिरि आरसी ली अँगुठा में सीसा उपर तासु के भाय॥
अगे अगेला पिछे पछेला बीचम छन्न रही दर्शाय १०६
टाड़ैं पहिरी सोने वाली जोसन पट्टी करैं बहार॥
दुलरी तिलरी पंचलरीलों तापर परा मोतियन हार १०७
नथुनी लटकन की शोभाअति कानन करनफूल शृङ्गार॥
ढारै गुज्झी द्वउकानन में बँदियाँ मस्तक करैं बहार १०८
बिछिया पहिरी पद अँगुरिन में अनवट सखी दीन पहिराय॥
कड़ाके ऊपर छड़ा बिराजै तापर पायजेव हहराग १०९
लहँगा पहिर्यो कीनखाव को चादर ओढ़िलीन फिरिभाय॥
जैसे बादल बिजुली चमकै तसगजमोतिनिपरैदिखाय ११०
तहिले राजा फिरि आवत भे औ रानी सों कह्यो सुनाय॥
बिदा कि बिरिया अब आई है जल्दी बेटी देउ पठाय १११
सुनिकै बातैं ये राजा की रानी बेटी लीन बुलाय॥
सीतामाता अनुसूया की सबियाँकथाकहीसमुझाय ११२
कहा न मानै जो पूरुष को नारी घोर नर्क को जाय॥
चोर कुकर्मी जो पतिहोबै सेवा किहे नारि तरिजाय ११३
बिनापराधै नारी त्यागै सो पति मरै भूँखके घाय॥
ऐसे कहिकै गजमोतिनि सों माता रोई हृदय लगाय ११४