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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२०३

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आल्हखण्ड। १९८

ब्याह बखानों त्यहि ब्रह्माको ज्यहिका पिता रजा परिमाल ५

अथ कथाप्रसंग॥


पृथीराज दिल्ली को राजा ज्यहिका जानैसकलजहान॥
कन्या उपजी जब त्यहिके घर तारा टूटि तबै असमान १
थर थर थर थर पृथ्वी कांपी दर दर बोले श्वान श्रृगाल॥
झन् झन् झन् झन् वायू डोलीं अशकुनबहुतभयेत्यहिकाल २
अशकुन दीख्यो पृथीराज ने तुरतै पंडित लीन बुलाय॥
लैके पोथी ज्योतिष वाली पंडित हाल दीन बतलाय ३
गौना ह्वैहै जब कन्या का ह्वैहै तबै घोर घमसान॥
बहुतक क्षत्री तब नशिजैहैं जुझिहैं बड़े बड़े ह्याँ ज्वान ४
ताते बेला यहि कन्या का राखो नाम आप महराज॥
पाय दक्षिणा पंडित चलिभो होबन लागि और फिरिकाज ५
छठी बारहों पसनी ह्वैगै बेला परो तामु को नाम॥
सात बरस की जब बेला भइ खेलत फिरै सखिन के धाम ६
कोउकोउसखियां तहँब्याहीथीं बेंदी दिये आपने भाल॥
क्वारी पूछैं तिन ब्याहिन ते सखितुमकहौ श्वशुरपुरहाल ७
ब्याही बोली अनब्याहिन ते मानो सखी बचन तुमसाँच॥
जब सुधि आवत है बालम कै तब उर जरै बिरहकी आँच ८
सुरपुर नरपुर अहिपुर माहीं सो सुख नहीं परै दिखराय॥
जो सुख पावा हम श्वशुरे में बालम छाती लीन लगाय ९
कटिगहि मसकैं हम नहिंठस कैं कसकै हृदयकिये सुधिआज॥
कासुखजानो तुमअनुब्याहिउ बैरिनि भई हमारी लाज १०
सुनि सुनि बातैं ये ब्याहिनकी सब अनब्यही गंई शर्माय॥
बढ़ी लालसा तब ब्याहे की त्याला घरै पहुंची आय ११