पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२०५

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पाल्हखण्ड । २०० इतनी जुर्रति ज्यहिके होवे टीका लेय हमारो सोय ॥ नहीं विधाता की मर्जी ना कन्याव्याह और विधिहोय२४ इतना लिखिकै पृथीराज ने नाई बारी लीन बुलाय॥ साल दुसाला मोतिन माला चीरा कलँगीलीन मँगाय२५ तिरपन पलकी अस्सी गजरथ उम्दा घोड़ा सवाहजार ॥ धरिके तोड़ा-दो मुहरन का अच्छा थार सूबरण क्यार २६ तीनि लाखको टीका दैक सबको हाल दीन समुझाय ॥ नगर मोहोबे कोउ जायो ना ओछी जाति बनाफरराय २७, चिट्ठी दीन्ह्यो फिरि ताहर को ताहर चलिमे शीश नवाय॥ नाई वारी चौड़ा ताहर फाटक पार पहुंचे भाय २० ताहर बैठे दलगंजन पर चौंड़ा एकदन्त असवार । कूच करायो फिरि दिल्ली ते दूनों चलत भये सरदार २६ आठ रोज को धावा करिकै मुन्नागढ़े पहूंचे जाय । लड़िका कारो गजराजा को पाती तुरत दीन पकराय ३० पदिक चिट्ठी गजराजा ने टीका तुरत दीन लौटार ॥ तहते पहुंचे फिरि बौरीगढ़ जहँपर रहें यादवा यार ३१ तिनहुन टीका जब लीन्हो ना नखर फेरि पहुंचे जाय॥ नरपति राजा नस्वरवाला सोऊ टीका दीन फिराय ३२ गंगाधर बूंदी का राजा त्यहि दरवार गये फिरि धाय॥ चिट्ठी पढ़िके सोऊ ठाकुर टीका तुरत दीन लौटाय ३३ ताइर वोले फिरि चौड़ाते दादा कही हमारी मान । चार महीना घूमत द्वैगे अब हम भये बहुत हैरान ३४ जल्दी चलिये अब उरई को जहॅपर वसै महिल परिहार॥ पर मन भाय गई चौड़ा के हाथी उपर भयो असवार ३५