पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२०९

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६ आल्हखण्ड । २०१ कउनसोकाज अकाज भयो महराज गयउ जहे लाज गाई ॥ सुक्खको साज समाज करउ रघुराज सदा मम लाज बचाई। घबड़ानको आज न काज कळू हम व्याहकर बछराजदुहाई७१ सुनिकै बातें मलखाने की राजा गयो सनाकाखाय । मलखेचलिमे फिरि महलनको मल्हना पास पहूंचे जाय " चिट्ठी पदिक पृथीराज की मलखे हाल दीन बतलाय। मुनिक चिट्ठी पृथीराज की मल्हनागई तुरत कुँमिलाय७३ तारा टूटे आसमान में थर थर धरा गई तब हाल। चील्हे छाई राजमहल में रोवन लागे श्वान शृगाला मल्हना वोली तब मलखे ते अशकुन बहुत परें दिखलाय। कारो ब्रह्मा घरमें रहिहै टीका आप देउ लौटाय ७५ मुनिकै वात ये मल्हना की मलखे बोले बचन रिसाय। व्याह विधाता यह रचिराखा टीका कौन सके लौटाय ७६ सदा न फूलै कहुँ वन तोरई माई सदा न सावन होय सदा जवानी )नहिं स्थिर है माई सदा न वर्षा होय ७ टीका फेरो जो दिल्ली का माता होउ जगत बदनाम । जातिके ओछे मोहवे वाले यह है देश-देश सरनाम ७ होय नतैती जो दिल्ली में पूरण होयँ हमारे काम। मुन्ना नैनागढ़ माड़ो में हमपर कृपाकीन सियराम ७ ये सब अशकुन हैं ताहर को माता कहां ज्ञान गातार। अत्रै कबुतरी ना बुड्ढी भै ना वल खाय गई तलवार हमरो मूड़ लियो कटवाय। मल्हना दीन्ह्योबाँहगहाय चार जो वाँका जा ब्रह्मा का बातें सुनिके ये मलखे की