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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२११

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आल्हखण्ड। २०६

सोई दशरथ के रघुरैया नैया तुही लगैया पार॥
एक पूतकी मैं मैयाहौं ताकी कुशल किह्योकरतार ९४
सुमिरन करिकै रघुनन्दन को मल्हना करनलागि घरकाम॥
मलखे ठाकुर त्यहिसमया में ताहर वेगि बुलावा धाम ९५
जितने वासी हैं मुहबे के आये सबै नारि नर द्वार॥
सात सुहागिल त्यहि समयामें गावन लगीं मंगलाचार ९६
बड़ी भीर भै परिमालिक घर कहुँ तिलडरा भूमि ना जाय॥
चूड़ामणि पण्डित तहँ आयो साइतिं तुरत दीन बतलाय ९७
तव पिचकारी भरिकेशीर रँग मारैं एक एक को धाय॥
धूरि उड़ाई तहॅ अबीर की महलन गई लालरी छाय ६८
चौक पुराई गजमोतिन सों पीढा तहाँ दीन धरवाय॥
चौड़ा ताहर द्वउ ठाढ़े थे ब्रह्मा गये तहाँपर आय ६६
को गति बरणै परिमालिक कै लोहा छुये सोन ह्वैजाय॥
पारस पाथर ज्यहिके घरमाँ त्यहिकी द्रव्यसकैकोगाय १००
ऊदन बोले तहॅ ताहर सों अब तुम टीका देउ चढ़ाय॥
साँग गाड़ दइ तब ताहरने औयहबोल्यो भुजा उठाय १०१
सॉग उखारैं ब्रह्मा ठाकुर तौ हम टीका देई चढ़ाय॥
रीति हमारे यह घरकी है साँचे हाल दीन बतलाय १०२
सात तबा लोहे के नीचे तापर साँग गाड़ि हम दीन॥
सॉग उखारैं ब्रह्मा ठाकुर तौहमब्याहबहिनकाकीन १०३
देखि तमाखा बहु ताह रका मल्हना बोली वचन रिसाय॥
अशकुनकीन्ह्योम्बरेमहलनमां टीका तुरत देउ लौटाय १०४
बिना बियाहे ब्रह्मा रहि हैं तौ नहिं होय हमारी हान॥
अकिन तुम्हारी को लैलीन्ही मानों नहीं कही मलखान १०५