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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२१३

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आल्हखण्ड। २०८

बचे युधिष्ठिर समरभूमि ते पाँचो भाय कृष्ण महराज॥
यै ना रहिगे त्यउ दुनिया मॉ रहिगै एक जगतमें लाज ११८
जप तप होवै नहिं कलियुग में ना कछुदान पुण्य अधिकाय॥
जो मरिजावैं समरभूमि में पावैं स्वर्गलोक को माय ११९
इतना कहिकै मलखे ठाकर टीका तुरत दीन चढ़वाय॥
चारो नेगिन को बुलवायो भूषण वस्त्र दीन पहिराय १२०
बहुधन दीन्ह्यो फिरिचौंड़ा को अपने हाथ बनाफरराय॥
चूड़ामणि पंडित ते बोल्यो अबतुगलगनदेउबतलाय १२१
सुनिकै बातैं मलखाने की पंडित बोला लगन बिचार॥
माघ महीना कृष्ण पक्ष में तेरसि निथी शुक्रको बार १२२
नीकी साइति मलखाने है सो हम तुमका दीन बताय॥
सुनिकै बातैं ये पंडित की औ ताहरको दीन सुनाय १२३
यादि राखियो यह दिन भाई दिल्ली ब्याहकरव हम आय॥
बातैं सुनिकै ये मलखे की ताहरबलिभेशीशनवाय १२४
दगीं सलामैं सौ तोपन की धुवना रहा सरग मड़राय॥
अद्भुत शोभा में मोहबे के घर घर ढोलक परै सुनाय १२५
चलै पिचक्का कहुँ केशरि के कहुँकहुँ अबिरगुलालउड़ाय॥
पान मोहोबे के जग जाहिर लाली पीकैं पर दिखाय १२६
कहुँ कहुँ खेला गेला ठाढ़े बेला हार परैं दिखराय॥
कहूँ चमेला के तेला को रहेअलबेलाजुलुफलगाय १२७
कहुँ कहुँ हेला मेला कैकै बुलबुल बुलबुल रहे लड़ाय॥
उड़े तमाखू कहुँ हुक्कन में गुड़गुड़गुड़गुड़रहेमचाय १२८
मारु मारूकै मौहरि बाजे कहुँ कहुॅ हाव हाव करनाल॥
कहुँ पेवड़ा बालक बदलैं कहुॅकहुॅलड़ैंमल्ल जसकाल १२९

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