पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२१४

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प्रझाका विवाह । २०६ पटा बनेठी वाना कहुँ कहुँ कहुँकहुँ गदका को घमसान ।। बाढ़ि धरावें कहुँ कहुँ क्षत्री कहुँकहुँह निशानाज्यान १३० देखि तमाशा चौड़ा ताहर मनमें बड़े खुशी लैजायें ।। कूच कराये दउ मोहवे ते दिल्लीशहरगये नगच्याय १३१ ह्याँसुधि पाई माहिल गकुर दिल्ली अटे अगाड़ी जाय ॥ माथनवायो जब माहिल ने खातिर कीन पिथौराराय १३२ सोने कि चौकी में बैठालो राजा दिल्लीके महराज ।। बोले पिरथी फिर माहिल ते तुम्हरोकोन करी हमकाज१३३ घोले माहिल फिर पिरथी ते मानो कही सत्य महराज ।। व्याहजो कीन्ह्यो तुम मोहवे में खोई सबै आपनी लाज १३४ जाति बनाफरकी ओछी है है सब जातिन केरि उतार ॥ इतना कहते चौड़ा ताहर दोऊ आयगये दरबार १३५ सूरति दीख्यो जब ताहर की गई हाँक दीन ललकार ॥ हमजो वरजा तुमको ताहर ना तुम मानी कही हमार १३६ सुनिक वाते ये राजा की ताहर हाथजोरि शिरनाय । कही हकीकति सब मलखे की ताहर बारवार समुझाय १३७ माहिल बोले फिर राजा ते नाहर दिल्ली के सरदार ॥ टीका फेरो तुम जल्दी सों इतनी मानो कही हमार १३८ इतना सुनिक चौड़ा चलिभा ताहर बोले बचन उदार ।। बड़े लडैया मोहबे वाले जिनके बाँट परी तलवार १३६ व्याहन आई जब तुम्हरे घर तब तुम मूड़ लिह्यो कटवाय॥ टीका फिरिहै अब दादा ना तुमते सत्यदीन बतलाय १४० यह मन भाय गई माहिल के तुरतै कीन्ह्यो रामजुहार ।। विदा माँगिकै पृथीराज सो चलिभा उरई का सरदार १४१