खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय १४२
माथनवावों पितु अपने को ह्याँते करों तरँग को अन्त॥
रामरमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १४३
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना-
रायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलानिवासिमिश्रवंशोङ्दव
बुधकृपाशंकरसूनुपं॰ ललिताप्रसादकृतब्रह्माटीकावर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥
सवैया॥
भो रधुनाथ अनाथन नाथ सनाथ करो अब तो भगवाना।
और न आश निराशकरो नहिं देखिचुके सब और ठिकाना॥
मात पिता अरु भ्रातको नात सबै तुमहीं यहही मनजाना।
गात सुखात सबै दिन जात नहीं ललितें कछु झूठबखाना १
सुमिरन॥
दोउ पद ध्यावों रघुनन्दन के बन्दनकरों जोरि द्वउहाथ॥
नहीं सहायक कउ काको है स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ १
बिना तुम्हारे को परमारथ अन्त में देइ कौन को साथ॥
भो जगतारण भवभय हारण तुमहीं सदा हमारे नाथ २
को अस दुनियामाँ पैदा भा जो तरिगयो बिना तव नाम॥
माता भ्राता अरु ताता ना अन्तम अवैं आपने काम ३
तुम्ही गोसइयाॅ दीनबन्धु हौ सीतापती चराचर नाथ॥
गलति हमरी द्विज देही का जावै समय हाथ बेहाथ ४
शिव औ ब्रह्मा कोउ पायो ना गाय कै पार तुम्हारी गाथ॥
ब्यहि को गावों कसमानुष में स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ ५