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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२१६

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ब्रह्माका बिवाह। २११

छूटि सुमिरनी गै रघुबर कै सुनिये ब्रह्मा केर बिवाह॥
फौजै सजिहैं आल्हा ऊदन करि हैं समर केर उत्साह ६

अथ कथाप्रसंग॥

माहिल चलिभे जब दिल्ली ते मल्हना महल पहूंचे आय॥
बड़ी खुशाली भै मल्हना के हमरे बूत कही ना जाय १
मल्हना बोली फिरि माहिल ते भैया उरई के सरदार॥
टीका चढ़िगा है दिल्ली का ब्रह्मा भैने जौन तुम्हार २
बहुतकअशकुन त्यहिसमयाभे जियरा धीर धरा ना जाय॥
मैं समुझायों भल मलखे को पैना मन्यो बनाफरराय ३
त्यही समैया ते भैया अब रहि रहि मोर प्राण घबड़ायँ॥
माह महीना जब ते आवा तब ते भूख नींद गै भाय ४
कलनहिं पावैं हम पलँगा में औ घरदीखे नित्त डेरायँ॥
बिरमा द्यावलिके लड़िका सब हमको शत्रु रूप दिखरायँ ५
पै अब करतब कछु सूझैना साँचे हाल दीन बतलाय॥
बातैं सुनिकै ये मल्हना की माहिल बोले बचन बनाय ६
काम हमारो रहै पिरथी ते हम दरबार मँझावा जाय॥
सुनी हकीकति तहँ पिरथी की बहिनी सांच देयॅ बतलाय ७
जाति बनाफर की ओछी है पिरथी बार बार पछितायॅ॥
ब्याहन अइहैं हमरे घरमाँ सबके मूड़ लेव कटवाय ८
चलिकै ब्रह्मा इकलो आवै तौ बिनव्याधि ब्याह ह्वैजाय॥
चन्द्रवंश में उइ पैदा है नहिं कछु उजुरु हमारे भाय ९
हम समुझावा तब पिरथी को ऐसै करब मोहोबे जाय॥
भैने हमरो ब्रह्माकुर औ बहनोई चँदेलोराय १०
बड़ी खुशाली भै पिरथी के फूले अंग न सक्यो समाय॥