पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२१७

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आल्ह खण्ड । २१२ भलो मापनो जो तुम चाहो इकलो ब्रह्मा देउ पठाय ११ हमहूं जैवे त्यहि संगैमाँ तुम्हरे काज सिद्ध हैजायें । सुनिक वात ये माहिल की मल्हना वोली मन हर्षाय १२ कहा तुम्हारो हम टारख ना भैया उरई के सरदार। ॥ इकलो ब्रह्मा तुम लै जावो जामें होय नहीं तहँ मार १३ माहिल बोले फिरि मल्हनाते बहिनी मानो कही हमार॥ चोरी चोरा काम निकालो नाकछुरीतिभांति की व्यार.११ यह मन गायगई मल्हना के चुप्पे पलकी लीन मँगाय ॥ ब्रह्माठाकुर को बुलवायो औ पलकीमॉ दीन विठाय १५ लैके पलकी माहिल चलिमे ऊदन अटा तहाँ पर आय।। हाल जानिकै सब माहिल को चुप्पै धावन लीन बुलाय १६ लिखिकै चिट्ठी मलखाने को ऊदन तुरतै दीन पाय॥ चिट्ठी पढ़िकै मलखाने ने औ सुलखेको लीन बुलाय१७ कहि समुझायो सव सुलखेको सोऊ चला. वेगिही धाय ॥ नायकै पकरयो सो माहिलको तुरतै कैद लीन करवाय १६ लेकै पलकी औं माहिल को सिरसागढ़े पहूँचा आय॥ चाँधिजजीरन फिरिमाहिलको फाटक पास दीन बैठाय १६ ऊदन बलिभे फिरि महलनको मल्हने शीश झुकावाजाय॥ हाथ जोरिकै ऊदन बोले माता साँच देय बतलाय २० माहिल मामा की बातन में इकलो ब्रह्मा दियो पठाय।। कुशल न होइहै तह ब्रह्माकी साँची बात कहें हम माय २१ इतना कहिके उदन चलिभे दशहरिपुर पहूँचे आय॥ कही हकीकति सत्र आल्हासों ऊदन बार बार समुझाय २५ चिट्ठी लिखिक मलखाने ने औ परिमाले दीन जनाय।