भलो आपनो जो तुम चाहौ इकलो ब्रह्मा देउ पठाय ११
हमहूं जैवे त्यहि संगैमाँ तुम्हरे काज सिद्ध ह्वैजायँ॥
सुनिकै बातैं ये माहिल की मल्हना बोली मन हर्षाय १२
कहा तुम्हारो हम टाख ना भैया उरई के सरदार॥
इकलो ब्रह्मा तुम लै जावो जामें होय नहीं तहँ मार १३
माहिल बोले फिरि मल्हनाते बहिनी मानो कही हमार॥
चोरी चोरा काम निकालो नाकछु रीतिभांति की ब्यार ११
यह मन भायगई मल्हना के चुप्पे पलकी लीन मँगाय॥
ब्रह्माठाकुर को बुलवायो औ पलकीमॉ दीन विठाय १५
लैकै पलकी माहिल चलिभे ऊदन अटा तहाँ पर आय॥
हाल जानिकै सब माहिल को चुप्पै धावन लीन बुलाय १६
लिखिकै चिट्ठी मलखाने को ऊदन तुरतै दीन पाय॥
चिट्ठी पढ़िकै मलखाने ने औ सुलखेको लीन बुलाय १७
कहि समुझायो सब सुलखेको सोऊ चला वेगिही धाय॥
जायकै पकर्यो सो माहिलको तुरतै कैद लीन करवाय १८
लैकै पलकी औं माहिल को सिरसागढ़ै पहूँचा आय॥
बाँधि जँजीरन फिरि माहिल को फाटक पास दीन बैठाय १९
ऊदन चलिभे फिरि महलनको मल्हनै शीश झुकावाजाय॥
हाथ जोरिकै ऊदन बोले माता साँच देयँ बतलाय २०
माहिल मामा की बातन में इकलो ब्रह्मा दियो पठाय॥
कुशल न होइहै तहँ ब्रह्माकी साँची बात कहैं हम माय २१
इतना कहिकै ऊदन चलिभे दशहरिपुरै पहूँचे आय॥
कही हकीकति सब आल्हासों ऊदन बार बार समुझाय २२
चिट्ठी लिखिकै मलखाने ने औ परिमालै दीन जनाय॥
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आल्हखण्ड। २१२
