लज्जा करिहौं यहि समया में मारा जाय पिथौराराय ४०
यहै सोचिकै मन अपनेमाँ महलन तुरत पहूँची आय॥
लैकै डिब्बा सोनेवालो तामें बीरा धरे लगाय ४१
लैकै डिब्बा फिरि महलन सों चकरन साथ चली हर्षाय॥
जायकै पहुँची त्यहि मन्दिर में जहँ पर बैठ कनौजीराय ४२
औ रुख दीख्यो महराजा को सब को दीन्हो पान गहाय॥
रंचक लज्जा जब दीख्यो ना तब मनस्वचा कनौजीराय ४३
नहीं पिथौरा इन तीनोंमाँ नाहक गयो हृदय भ्रमछाय॥
यहै सोचि कै मन अपने माँ फिरि मंत्रीकोलियोबुलाय ४४
इन्हैं टिकावो लै बगिया माँ खीमा तहाँ देव गड़वाय॥
हुकुम पायकै महराजा का तीनों निकर द्वारपर आय ४५
मूरति दीख्यो फिरि द्वारेपर जो अनुहारि पिथौरा केरि॥
बार बार तहँ तीनों मिलिकै सब अँग रहे तासुके हेरि ४६
मूरति दीख्यो निज सूरतिकै तब नरिमरा पिथौराराय॥
जायकै पहुँच्योफिरि बगियामें तम्बू गड़ा तहाँपर आय ४७
विछेउ पलँगरा तहँ निपारि को मखमल गद्दा दियो डराय॥
धरेउ उशीशे में गिरदा को तामें ल्यट्यो पिथौराराय ४८
त्यही समइया त्यहि औसरमाँ औ पदमिनिका सुनो हवाल॥
त्यहिसुनिपावानिजमहलनमाँ बगियाटिक्योआयनरपाल ४९
तब ललकारा निज बांदिनका अबहीं पलकी लवो लिवाय॥
सुनिकै वातैं संयोगिनि की सब पलकी लईं सजाय ५०
सुमिरि भवानी शिवशंकर को मनमें श्रीगणेश को ध्याय॥
बैठि पालकी में संयोगिनि मनमें सियामातु पदलाय ५१
जायकै पहुँची त्यहि बगिया में जहँ पर टिका पियौराराय॥
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