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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२२१

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आहखण्ड। २१६

चारघरी भर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्तकीधार ५९
जौन शूरमाहो दिल्ली को द्वारे देवै नेग हमार॥
ऐसे वैसे हम नेगी ना कम्मर बँधी ढाल तलवार ६०
शूर सराही हम ऊदन का मलखे सिरसा के सरदार॥
का गति बरणैं हम आल्हा की जिनसों हारिगई तलवार ६१
तिनके नेगी हम रूपन हैं राजै खबरि जनावो जाय॥
सुनिकै बातैं ये रूपन की रहिगा द्वारपाल सन्नाय ६२
सोचिसमझिकै फिरिवोलतभा रूपन काह गये दोराय॥
दहीके धोखे कहुँ भूले ना जोतैं जाय कपास चवाय ६३
एक तो ऊदन कै गिनती ना बावन चढ़ै उदयसिंह आय॥
ह्याँपर मलखे सब घर घर हैं आल्हा कौनवस्तु हैं भाव ६४
है परिमालिक अस ठाकुर बहु जिनते पोत तसीला जाय॥
जूंठनि खावै घर घर बारी सो का रारि मचावै आय ६५
पीकै दारू को आवा है की बश सन्निपात के भाय॥
झूरिभांग जो तू खावा हो तो हम औषधि देयँ बताय ६६
ज्ञान ठिकाने करिसागढ़ सों गजै काह सुनावैं जाय॥
सुनिकै बातैं क्वरि डाँड़ेपर धन बोला क्रोध बढ़ाय ६७
आयगयो तव परिमालिककी सहाय थे कोऊ कहुँ देखिपरैना।
जानत नाहिन रूपन को अरु नाहक दुष्ट बकै बहु बैना॥
ताहर नाहर को गहिकै इकलो मलखान जिता बिन सैना।
का बड़िबात करैं ललिते दिनही नहिं देखिपरै तव नैना ६८



बातैं सुनिकै ये बारी की चलिभा द्वारपाल ततकाल॥