पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२२१

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३० आहखण्ड । २१६ चारघरी भर चलै सिरोही दारे बह रक्तकीधार ॥ जौन शूरमाहो दिल्ली को दारे देव नेग हमार॥ ऐसे वैसे हम नेगी ना कम्मर बँधी ढाल तलवार ६. शूर सराही हम ऊदन का मलखे सिरसा के सरदार॥ कागति बरण हम आल्हा की जिनसों हारिगई तलवार ६१ तिनके नेगी हम रूपन हैं रानै खरि जनावो जाय ।। मुनिके वात ये रूपन की रहिगा द्वारपाल सन्नाय ६२ सोचिसमझिकै फिरिवोलनमा रूपन काह गये दोराय ॥ दहीके धोखे कहुँ भूले ना जोतें जाय कपास चवाय ६३ एक तो ऊदन के गिनती ना वावन चर्दै उदयसिंह आय॥ ह्याँपर मलखे सब घर घर हैं आल्हा कौनवस्तु हैं भाव ६४ है परिमालिक अस ठाकुर बहु जिनते पोत तसीला जाय ।। चूंठनि खावै घर घर बारी 'सो कारारि मचावै आय ६५ पीके दारू को भावा है की बश सन्निपात के भाय । झूरिभांग जो तू खावा हो तो हम औषधि देयं वताय ६६ ज्ञान ठिकाने करिसागढ़ सौ गजे काह सुनावे जाय ।। सुनिक बातें करि डाँडेपर धन बोला क्रोध बढ़ाय ६५ मिल ढगे नभमा आयगयो तव परिमालिककी तलाय कोऊ कहुँ देखिपरेना। जानत नाहिन रूपन को अरु नाहक दुष्ट बकै बहु वैना ॥ ताहर नाहर को गहिक इकलो मलखान जिता विन सैना। का वड़िवात करें ललिते दिनही नहिं देखिपरे तव नैना ६५ बातें मुनिक ये वारी की चलिभा द्वारपाल ततकाल.॥