पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२२३

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आल्ह खण्ड । २१० कहो हकीकति सब दिल्ली के द्वारे भली कीन तलवार १ बातें सुनिकै उदयसिंह की रूपन यथातथ्य गा गाय सुनिक बातें ये रूपन की माहिल बोले वचन वनागर यह नहिं चहिये पृथीराज को जो अब रारि बढ़ावत जाएँ । कौन दुसरिहा है आल्हा का सम्मुख लड़े समर में आय ३ जो मन पा बघऊदन का राजै तुरत देय समुझाय।। नेग कराय देय द्वारे का सातो भावरि देय फिराय ८४ भली भली कहि ऊदन बोले माहिल घोड़ी लीन मँगाय ॥ चड़िक घोड़ी माहिल ठाकुर दिल्ली शहर पहूँचे जाय ५ को गति बरौं तहँ पिस्थी के भारी लाग राजदरवार । । साँडेराय पिरथी का भाई धांधू तासु पुत्र सरदार ८३ रहिमति सहिमति जिन्सीवाले औं रणधीर लहाउर क्यार ।। भुरा मुगुलिया कावुल वाला टिहुनन धरे नाँगि तलवार देवी मरहटा दक्षिण वाला आला समरधनी मैदान ।। अंगद राजा बालीयर का जगनिकक्यारभुतावान सातो लड़िका पृथीराज के तेऊ वैठि राजदरवार। सूरज, चन्दन ये सरदार ८६ मर्दन, सर्दन, सातो लड़िका ये रणवाघ लड़ेया वाल। सोने सिंहासन पिरथी सोहैं त्यहिमाँजड़े जवाहिरलाल ९० और ठाकुर बहु बैठे हैं एकते एक शूर सरदार ।। तही पहुँचो उरई वाला तुरते कीन्ह्यो राम जुहार ।। किलो सातिरी पृथीराजने अपने पास लीन बाय । माहिल बोला तव पिरथी ते मानो कही पिथौरागय . माम न मारहे लड़े भिड़ते दूनों तरफ हानिई भाषण मोती जवाहिर, गोपी, ताहर,