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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२२३

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आल्हखण्ड। २१८

कहौ हकीकति सब दिल्ली कै द्वारे भली कीन तलवार ८१
बातैं सुनिकै उदयसिंह की रूपन यथातथ्य गा गाय॥
सुनिकै बातैं ये रूपन की माहिल बोले बचन बनाय ८२
यह नहिं चहिये पृथीराज को जो अब रारि बढ़ावत जायँ॥
कौन दुसरिहा है आल्हा का सम्मुख लड़ै समर में आय ८३
जो मन पावैं बघऊदन का राजै तुरत देयँ समुझाय॥
नेग कराय देयँ द्वारे का सातो भॉवरि देयँ फिराय ८४
भली भली कहि ऊदन बोले माहिल घोड़ी लीन मँगाय॥
चड़िकै घोड़ी माहिल ठाकुर दिल्ली शहर पहूँचे जाय ८५
को गति बरणै तहँ पिस्थी कै भारी लाग राजदरबार॥
खाँडेराय पिरथी का भाई धाँधू तासु पुत्र सरदार ८६
रहिमति सहिमति जिन्सीवाले औं रणधीर लहाउर क्यार॥
भुरा मुगुलिया काबुल वाला टिहुनन धरे नाँगि तलवार ८७
देबी मरहटा दक्षिण वाला आला समरधनी मैदान॥
अंगद राजा ग्वालियर का जगनिकक्यारभुगंताज्वान ८८
सातो लड़िका पृथीराज के तेऊ बैठि राजदरबार॥
मोती जवाहिर, गोपी, ताहर, सूरज, चन्दन ये सरदार ८९
मर्दन, सर्दन, सातो लड़िका ये रणबाघ लड़ैया बाल॥
सोने सिंहासन पिरथी सोहैं त्यहिमाँजड़े जवाहिरलाल ९०
और ठाकुर बहु बैठे हैं एकते एक शूर सरदार॥
तही पहुँचो उरई वाला तुरतै कीन्ह्यो राम जुहार ९१
किह्यो खातिरी पृथीराजने अपने पास लीन बैठाय॥
माहिल बोला तब पिरथी ते मानो कही पिथौरागय ९२
काम न सहिहै लड़े भिड़ते दूनों तरफ हानिहै भाय॥