पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२२५

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आल्हखण्ड । २२० पहिले शरबत माहिल पीवें पाछे सब को देउ बटाय १०५ इतना सुनिकै सूरज चलिमे तुरंत काने जनो चढ़ाय॥ माहिल वोले तत्र देवाते क्षत्री काह गये बौराय १०६ पान वड़ेको पानी छोटे यहहै रीति सदा की भाय ।। भाय लहुरवा शरबत पीवे औरो पियें बनाफरराय १०७ माघ महीना दिन शरदी के हमरो शखत पियै वलाय ।। शिरमें पीड़ा ऐसे होवे औ फिरिसन्निपातद्वैजाय १०८ चातें सुनिकै ये माहिल की देवा कुत्ता लीन बुलाय॥ 'पीते शस्त्रत कुत्ता मरिगा तब सब गये तहां सन्नाय १०६ जितना शरबत रहै वहिंगिनमें सो सब खन्दक दीन डराय । भागिक सूरज दिल्ली आये औ दरबार पहूंचे आय ११० खबरि जनाई सब राजा को नेगी चले यहां ते धाय ।। भागत नेगिन ऊदन देखा पकरा तुरत सबनको जाय १११ दया आयगे तब आल्हा के तुरत नेगी दीन छुड़ाय नेगी चलिभे सब दिल्ली को औदवार पहूंचे आय ११२ कही हकीकति सब पिरथी ते नेगिन बार बार शिरनाय ।। माहिल बोले परिमालिक ते मानो कही चंदेलेराय ११३ यह नहिं करतब है पिरथी के लरिकन घाटि कीन ह्याँ आय॥ रक्षक ज्यहिको है परमेश्वर त्यहिकोबार न बाँकाजाय ११४ पै रिस हमरे अस आई है सबियाँ दिल्ली ड. खुदाय ।। काह बतावें हम जीजा ते तुम सुनिलेउ लहुरखाभाय ११५ शङ्का हमपर है देवा की साँचे हाल देय बतलाय ।। हम नहिं जानत यह करतवरहैं मानो कही बनाफरराय १.१६३ बड़ी पियारी मल्हना बहिनी औ नित खातिर करें हमारि.॥