पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२२९

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आल्ह खण्ड । २२४ करोख तमाशा दिल्लीवाले अंगुरी दाँते लीन चपाय १५१ मलखे इन दोऊ ठाकुर सम्मुख गही ढूंढ को आय। दाविकै मस्तक तिन हाथिनका दूनों दीन्ह्यों भूमि लुटाय १५४ दॉत तूरिके तिन हाथिन का दोऊ चढ़े घोड़ पर आय॥ ताहर बोले फिरि दोउन ते गानो कहीं बनाफरराय १५५ कलरा गिरायो अब खम्भन ते तो हम कही शूर फिरि माय॥ इतना मुनिकै जगनिक ठाकुर कलशन पासपहुंचाजाय १५६ ताहर बोला कमलापति सों मारो याहि दौरि सरदार। इतना सुनिक कमलापति फिरि दौरे लिहे नाँगितलवार १५७ कोगति वर जगनायक के भने जौन बँदेले क्यार। आवत दील्यो कमलापति को गईहाँक दीन ललकार १५८ लोटिज ठाकुर बरे सुर्चाते नहिं शिर काटि देउँभुइँ डारि । सुनिके वाते जगनायक की, कमलापतिउ बढ़ायोगरि १५६ हथी वढ़ायो फिरि आगे को जगनिक पास पहूंच्योजाय ॥ ऍड़ लगायो हरनागर को होदा उपर विराजाआय १६० भाला मास्यो कमलापति को सोतो लीन ढालपर वार॥ रिसहा हैकै जगनायक फिरि तुरतै बैंचिलीन तुलवार १६१ ऐंचि महाउत को मारत भा तुरते भूमि दीन शिरडार ।। भावा गस्तक ते भूमा फिरि गई हाँक दीन ललकार १६२ सँभरिकै बैठे अव हौदापर ठाकुर हाथी के असवार ॥ की भगि नावै म्बरे मुर्चा ते नहिअवजानवहतयमद्वार१६३ बातें सुनिके जगनायक की कमलापतिउ दीनललकार । काह गरे तू बोलत है ठाकुर घोड़े के असवार १६४ तू अस क्षत्री हम संगर में केतन्यो डारे खेलि शिकार