पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२३

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आल्हासण्ड। उतरिकै पलकी सों जल्दासों माला गले दीन पहिराय ५२ विरा खरायो पृथइरान को आपन नाम दीन बतलाय ॥ हारजोरिकै संयोगिनि फिरि बोली आरतवचन मुनाय ५३ देवी देवता हम सब ध्याये ओ महराज पिघौगराय ॥ दर्शन तुम्हरे तब हम पाये तुवमन काह देउ बतलाय ५४ बात सुनिकै संयोगिनि की बोल्यो पृथराज महराज ॥ लड़ब चंदेले लों सँभराभरि पदमिनिअवशितुम्हारेकाज ५५ मानभंग करि बन्देले को डोला लै दिल्ली तब जाउँ ।। जो असकनउज मॉकरिहाना तौ नहिं कयो पिथौराना ५६ धीरज राखो अपने मनमा अबतुम लोटि महलको जाउ ।। पन्द्रह सोलह दिनके भीतर हम तुम होव एकही गई ५७ वान सुनिक महराजा की तब चरणन में शीश नवाय ॥ बेवि पालकी में संयोगिनि सीता रामवाण पदध्याय ५८ चारि कहरवा मिलि डोजाले महलन तुरत दीन पहुँचाय ।। गैसंयोगिनि जब महलन को पौढ़ी तुरत पलंग पर जाय ५६ खेन छूटिगो दिननायक सों भण्डागजो निशाकोग्राय ।। तारागण सब चमकन लागे सन् ससनासन्न गाकार ६० सोय पिथौरा गे तम्बू में महलन रूवा इलाराय ।। बोले बौगिोते मुरगन वॉग दीन हर्षाय ६१ जगा देला तब महलन में तम्बू जगा पियोंशराय ।। प्रातक्रिया करि तबदोनों नृप आपन आपनइट मनाय ६२ वैव्यो महलन में चन्देला तम्बू में पियोगराय ।। अपने मन्त्री को बुलवायो यड्ड महराज कनौजीराय ६३ साल उन्नाला मोतिन माला हीरा पन्ना लीन मँगाय ।।