पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२३७

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। आल्ह खण्ड । २३४ मर्द न ऐसो कहुँ पैदा भो जैसो रहै बनाफरराय ६० शोच आयगा ब्रह्मानंद के मनमाँ बार बार पछिताय । छाती पीट रानी अगमा महलन गिरी पछाराखाय ६९ तोहिं चौंडिया यह चाही ना कीन्हे घाटि महलमाँ आय ॥ नालति तेरी द्विज देही का चौड़ा काहगये बौराय ७० घाव मंदिकै बबऊदन का रानी औषय दीनलगाय॥ कन्या राजनकी महरानी औ सब जाने भले उपाय ७१ मारु कूटकी घर घर चरचा क्षत्री बंश रहे तंत्र भाय ।। राजा पिरथी की महरानी त्यहिबघऊदनदीनजियाय७२ उठा दुलरुवा द्यावलिवाला बेला देखिगई हाय॥ ऐसि खुशाली मैं ब्रह्मा के जैसे योग सिद्धि द्वैजाय ७३ गर्दै सुहागिल दिल्ली वाली लैले नाम बनाफरक्यार ।। बड़ी खुशाली भै महलन में होवन लाग मंगलाचार ७४ पाय लागि महरानी के बोला उदयसिंह सरदार ।। आयसु तुम्हरी जो हमपावें तो तम्बुन को होयँ तयार ७५ रूप देखिके बघऊदन को नारी पीटन लगींकपार । अब ये चलन हेत तय्यार ७६ रूप न देखा क्यहु क्षत्री का जैसो उदयसिंह सरदार । पाग वैजनी शिरपर वाँधे ऊपर कलँगी कर वहार ७७ बेला चमेला के गजरा है' तिनपर परा मोतियनहार ॥ नाँके नैना यहि क्षत्री के सखिया चुभे करेजे फार ७२ मन बौराना सहिवाला पर आला देवरूप अवतार। इसरि वाला त्यहि काला में बोली मानो कही हमार ७१ भागि तुम्हारी अस नाही है जो ये होय तोर भरि । भई अभागिनिहमसब महलन