पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२३९

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आल्हखण्ड। २३६ विदा कि विरिया भव आई है यह मोहिं कह्यो चंदेलोराय : यह संदेशा हम लाये हैं ओ महराज पिथौराराय ।। जो कछु उत्तर तुम ते पावें राजे स्वई सुनावे जाय ६३ बातें मुनिके ये रूपन की बोले पृथीराज महराज ॥ देश हमारे की रीती यह पुरिखन कियो अगारीकाज च्याह के पीछे गौना देखें तवहीं हो पूर विवाह ॥ यहतुम कहियो परिमालिक ते ऐसे कहे वचन नरनाह ६५ धन्य वाखानैं हम आल्हा को सातो भाँवरि लियो कराय ।। हैं सब लायक मलखे ठाकुर हमरो कहाँ सँदेशो जाय ६६ सुनिक बातें पृथीराज की रूपन चला तुरत शिरनाय ॥ आयकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में ज्यहि में रह चंदेलेराय ६७ थाल्हा ऊदन मलखे सुलखे बैठे लिहे ढाल तलवार । जोगा भोगा मन्नागूजर जगनिक भैने चंदेलेक्यार ६६ जो संदेशा पृथीराज का रूपन सो गा सबै सुनाय॥ सुनिके बातें पृथीराज की भा मन खुशी चंदेलोराय ६६ हुकुम लगायो फिरि लश्कर में क्षत्री कूच देय करवाय॥ मानि आज्ञा परिमालिक की आल्हा कूच दीन फरमाय १०० कूच क डंका तब वाजत भो क्षत्री सबै भये हुशियार ॥ हथी चढ़ेया हाथी चढ़िगे बाकी घोड़न भे असवार १०१ चाजे डंका अहतंका के घूमन लागे लाल निशान ॥ पैठि पालकी ब्रह्मा चलि भे साथै चले वीर मलखान १०२ बोल औ तुरही के गिनती ना बाजन कीन घोर घमसान। ग्यारा रोज कि मैजलि करिकै. मोहवे अये बराती जान १०३ भागे चलिके रूपनवारी मल्दना महल पहूँचा भाय॥