विदा कि विरिया अव आई है यह मोहिं कह्यो चँदेलोराय ९२
यहु संदेशा हम लाये हैं ओ महराज पिथौराराय॥
जो कछु उत्तर तुम ते पावैं राजै स्वई सुनावैं जाय ९३
बातैं सुनिकै ये रूपन की बोले पृथीराज महराज॥
देश हमारे की रीती यह पुरिखन कियो अगारीकाज ९४
ब्याह के पीछे गौना देवैं तवहीं होवै पूर बिवाह॥
यहतुम कहियो परिमालिक ते ऐसे कहे बचन नरनाह ९५
धन्य बखानैं हम आल्हा को सातो भाँवरि लियो कराय॥
हैं सब लायक मलखे ठाकुर हमरो कहौ सँदेशो जाय ९६
सुनिकै बातैं पृथीराज की रूपन चला तुरत शिरनाय॥
आयकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में ज्यहि में रहैं चँदेलेराय ९७
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे बैठे लिहे ढाल तलवार॥
जोगा भोगा मन्नागूजर जगनिक भैने चँदेलेक्यार ९८
जो संदेशा पृथीराज का रूपन सो गा सबै सुनाय॥
सुनिकै बातैं पृथीराज की भा मन खुशी चँदेलोराय ९९
हुकुम लगायो फिरि लश्कर में क्षत्री कूच देयँ करवाय॥
मानि आज्ञा परिमालिक की आल्हा कूच दीन फरमाय १००
कूच क डंका तब बाजत भो क्षत्री सबै भये हुशियार॥
हथी चढ़ैया हाथी चढ़िगे बाकी घोड़न भे असवार १०१
बाजे डंका अहतंका के घूमन लागे लाल निशान॥
बैठि पालकी ब्रह्मा चलि भे साथै चले वीर मलखान १०२
ढ़ोल औ तुरही कै गिनती ना बाजन कीन घोर घमंसान॥
ग्यारा रोज कि मैजलि करिकै मोहबे अये बराती ज्वान १०३
आगे चलिकै रूपनबारी मल्हना महल पहूँचा आय॥
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आल्हखण्ड। २३६
