पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४१

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१२ आल्ह खण्डा २३० मालिक ललिते के तबलौतुम यशसों रही सदाभरपूर ११६ माथ नवावों शिवशंकर को यहँसों करों तरंग को अन्त ।। राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त ११७ इति श्रीलखनऊ निवासि (सी, पाई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज वाचूमयाग नारायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतड़ीकलां निवासि मिश्रवशोद्भवबुध कृपाशङ्करसूनु पण्डितललितामसादकत ब्रह्मापाणिग्रहणवर्णनोनामतृतीयस्तरंगः ॥ ३॥ ब्रह्मा औं बेला का विवाह सम्पूर्ण । इति।।