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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४१

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आल्हखण्ड। २३०

मालिक ललिते के तबलोंतुम यशसों रहौ सदाभरपूर ११६
माथ नवावों शिवशंकर को यहँसों करों तरँग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त ११७

इति श्रीलखनऊ निवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबूप्रयाग
नारायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलां निवासि
मिश्रवंशोद्भवबुध कृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत
ब्रह्मापाणिग्रहणवर्णनोनामतृतीयस्तरंगः ॥३॥

 

ब्रह्मा औ बेला का विवाह सम्पूर्ण॥

इति॥