पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४२

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अथ पाल्हखण्ड॥ उदयसिंहकाबिवाह अथवा नरवर की लड़ाई। सवैया॥ भो प्रभु दीनदयाल गुपाल सदा नंदलाल दोऊ पदध्यावों । सागर कीर्ति सबै गुण आगर नागर मोहनलाल बतावों ।। स्वर्ग शो नर्क रहूँ कतहूं पै सदा शुचिसों तुम्हरो गुणगावों। याँच यही ललिते कर साँच मिलें रघुनन्दन सो बर पावों ? सुमिरन ॥ दोउपद ध्यावों बड़े प्रेम सों स्वामी कृष्णचन्द्र महराज ।। काज सँवास्यो धर्मराज के राख्यो द्रुपदसुता की लाज ? कंस पछारयो यदुनन्दन तुम दीन्यो उग्रसेन को राज। सदा पियारे तुम भवन के हमरे माननीय शिरताज २ भक्त तुम्हारे सुखी न देखे आवत नाम वतावत लाज ।। भक्त सुदामा जग में जाहिर दूसर जनकपुरी दिजराज ३