पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४३

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आल्हखण्ड । २४० लक्ष्मीपति तुमको सब जानत चाहत सरन आपनो काज॥ भूप युधिष्ठिर की गति देखी बना रहे छूटिंग राज ४ वस्त्र न देखा जिन देहीमां केवल चढ़ी भस्म सब अङ्ग॥ रावण वाणासुर को देखा जिन सों जुरी आपसों जङ्ग ५ छूटि सुमिरनी गै देवन के औ ऊदन का सुनो विवाह ।। घोड़ खरीदन कावुल जैहैं पई मोहवे का नरनाह ६ अथ कथाप्रसङ्ग ॥ एक समैया परिमालिक का भारी लाग राजदरवार। बैठे क्षत्री सव महिफिल है एकने एक शूर सरदार ? १ पारस पत्थर ज्यहि के घरमा लोहा छुये सोन लैजाय । कौन बड़ाई तिनकै करिकै शोभा वरणि पार ले जाय २ माहिल शाले परिमालिक के सोऊ गये तहां पर आय ॥ देखि वनाफर उदयसिंह को माहिल पीर भई अधिकाय ३ माहिल वोले तहँ राजा सों मानो कही बँदेलेराय ॥ नाम तुम्हारो देश देश में तुम पर कृपा कीन रघुराय ४ एक बात की अब कमती है सो विन कहे रहा ना जाये। घोड़ तुम्हारे घर कमती हैं बूढ़े घोड़ भरे अधिकाय ५ रुपिया पैसा की कमती ना थोड़े घोड़ लेउ मँगवाय ॥ अवें बछेड़ा कावुलवाले तौफिरि नामहोय अधिकायद इतना सुनिक राजा बोले कावुल कौन खरीदन जाय ॥ हाथ जोरिक ऊदन बोले कावुल हमें देउ पठवाय ७ मुनिक वाते वदन की राजा गये सनाका खाय।। बोलिन आवा परिमालिक ते मुहँका विरागयो कुम्हिलाय - कलँगी गिरिगै फिरि पगड़ी ते काँपन लाग चंदेलोराय॥