लक्ष्मीपति तुमको सब जानत चाहत सरन आपनो काज॥
भूप युधिष्ठिर की गति देखी बनमाँ रहे छूटिगै राज ४
वस्त्र न देखा जिन देहीमां केवल चढ़ी भस्म सब अङ्ग॥
रावण वाणासुर को देखा जिन सों जुरी आपसों जङ्ग ५
छूटि सुमिरनी गै देवन कै औ ऊदन का सुनो विवाह॥
घोड़ खरीदन कावुल जैहैं पई मोहवे का नरनाह ६
अथ कथाप्रसङ्ग॥
एक समैया परिमालिक का भारी लाग राजदरवार॥
बैठे क्षत्री सब महिफिल हैं एकते एक शूर सरदार १
पारस पत्थर ज्यहि के घरमा लोहा छुये सोन ह्वैजाय॥
कौन बड़ाई तिनकै करिकै शोभा बरणि पार लै जाय २
माहिल शाले परिमालिक के सोऊ गये तहां पर आय॥
देखि बनाफर उदयसिंह को माहिल पीर भई अधिकाय ३
माहिल बोले तहँ राजा सों मानो कही चँदेलेराय॥
नाम तुम्हारो देश देश में तुम पर कृपा कीन रघुराय ४
एक बात की अब कमती है सो बिन कहे रहा ना जाये॥
घोड़ तुम्हारे घर कमती हैं बूढ़े घोड़ भरे अधिकाय ५
रुपिया पैसा की कमती ना थोड़े घोड़ लेउ मँगवाय॥
अवैं बछेड़ा कावुलवाले तौ फिरि नामहोय अधिकाय ६
इतना सुनिकै राजा बोले कावुल कौन खरीदन जाय॥
हाथ जोरिक ऊदन बोले कावुल हमैं देउ पठवाय ७
सुनिकै बातैं बघऊदन की राजा गये सनाका खाय॥
बोलि न आवा परिमालिक ते मुहँका बिरागयो कुम्हिलाय ८
कलँगी गिरिगै फिरि पगड़ी ते काँपन लाग चँदेलोराय॥