पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४४

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उदयसिंहका विवाह । २४१ रोवाँ बढ़े मे देही के नैनन दीन्यो झरी लगाय : माहिल बोले परिमालिक ते काहे शोच कीन अधिकाय ।। लड़िका बाउर ऊदन नाही जो तुम डरो चंदेलेराय १० इनते चढिक को मोहवेमाँ घोड़ा जोन खरीदन जाय । है गर्दाना इनको बाना कालौ लड़े न सम्मुख आय ११ कहिकै पलटत नहिं ऊदन हैं जानो भली भांति महराज ।। भय नहिं लावो अपने मनमाँ करि हैं सिद्धकाज रघुराज १२ बातें सुनिक ये माहिलकी बोले फेरि रजापरिमाल । तुम भल जानत हो ऊदन को कलहा देशराजको लाल १३ रारि मचाई यहु मारग में आई फेरि व्याधि कछु भाय ॥ बात चलाई तुम ऐसी है - जासोंशोचभयो अधिकाय? १४ सुनिकै बातें परिमालिक की बोला उदयसिंह सरदार ॥ शपथ शारदा शिवशङ्कर की हम काबुल को खड़े तयार १५ भली बताई माहिल मामा राजाकरो बचन विश्वास ॥ यक अवलम्बा जगदम्बा का सोई पूरि करें सव आश १६ क्षत्री हैक समरसकाचे त्यहि को बार बार धिकार ।। बाँझै हो सो नारी जग नाहक रखै पेटमें भार १७ बेद यज्ञ औ दान युद्ध ये क्षत्री केर रूप श्रृंगार ॥ ये नहिं होवे ज्यहि क्षत्री के त्यहि को बार बार धिक्कार १८ एक ऋचा गायत्री जानै सोऊ वेद पदैया ज्यान।। ब्राह्मण क्षत्री बनिया तीनों यासोंविमुखश्वानअनुमान १४ वा सुनिकै वघऊदन की बोले फेरि रजापरिमाल । कहा न मनिहाँ तुम बचा अब कलहा देशराज के लाल २० देवा ठाकुर को सँग लेके काबुल घोड़ खरीदो जाय ।।