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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४५

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आल्हखण्ड। २४२

रारि मचायो कहुँ मारग ना मान्यो कही बनाफरराय २१
इतना कहिकै परिमालिकने फिरि यह हुकुम दीन फरमाया॥
पंद्रह खबर मुहरै लैकै कावुल जाउ लहुरवा भाय २२
सुनिकै बातैं परमालिक की दोऊ हाथ जोरि शिर नाय॥
बिदा मांगिकै परिमालिकते मल्हना महल पहूँचाजाय २३
कही हकीकति सब मल्हनाते ऊदन बार बार शिरनाय॥
करतब जान्यो जब माहिलकै मल्हना बारबार पछिताय २४
पै भलजानै अपने मनमाँ मानी नहीं लहुरवाभाय॥
तासों रोंक्यो महरानी ना आशिर्वाद दीन हर्षाय २५
बिदा मांगिकै ऊदन चलिभा दशहरिपुरै पहूँचा जाय॥
हालबतायो सब माता को ऊदन बार बार समुझाय २६
सुनिकै बातैं बघऊदन की भौजी माता उठीं रिसाय॥
तुम नहिंजावो अब काबुलको ऊदन काह गये बौराय २७
आल्हा बरज्यो मल ऊदन को नीक न करो लहुरवाभाय॥
तुम्हैं पठावत नहिं राजा हैं तुमहीं कौन हेतु को जाय २८
बातैं सुनिकै ये आल्हा की ऊदन कहा वचन शिरनाय॥
हम तो जैवे अब कावुल को बहुतनधजीधजीउड़िजाय २९
हम को वरजो अब भाई ना इतना प्यार करो अधिकाय॥
बातैं सुनिकै बधऊदन की आल्हा चुप्पसाधि रहिजाय ३०
पायॅ लागिकै फिरि माता के औ सुनवाँ को शीशनवाय॥
बिदा मांगिकै बड़भाई सों ऊदन कूच दीन करवाय ३१
घोड़ मनोहर देवा बैठा ऊदन बेंदुलपर असवार॥
चला काफिला फिरिकाबुलको दोऊ चले शूर सरदार ३२
एक कोस जब नरवर रहिगा ऊदन बोले वचन सुनाय॥