पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । २४४ पनी पियावन अब घोड़े का फेरि न कह्यो दूसरीबार १५ नरपति राजा यहि नगरी का सबविधि शूरवीर सरदार ।। दरिजा टरिजाअव जल्दी सों क्षत्री घोड़े के असवार ४६ इतना सुनिकै उदन वोले अव ना वोले फेरि गवारि ॥ ऐसी बातें जो फिरि बोले तो मुहँ धाँसिदे तलवारि ४७ नरपति खरपति के गिनतीना बर बर कर बैजनी नारि ।। काह हकीकति है नरपति के हमरे साथ करें तलवारि १८ सुनिकै बातें ये ऊदन की सहमी तहाँ तुरत सो नारि॥ ॥ औरी नारी त्यहि सों बोली आई संग भग्न जे बारि ४६ रूप उजागर सब गुण सागर नागर घोड़े को असवार ।। करई वाणी नाहक बोलिउ बहिनी मानों कही हमार ५० यहु वर लायक है फुलवा के. सबविधि रूपशील गुणवान। वह तो बोली भल धीरज पर परिगई बनाफर कान ५१ साया। ऊदन बोलिउठा त्यहि नारि कौनअहै फुलवा सहिदानी। देहु वताय न राखु छिपाय धुभी मनमें सुनिबे को कहानी ।। कोमल बैन सुन्यो जब भामिनि बोलिउठी तबहीं यह बानी। नरपतिकी कन्या लखिकै ललिते रतिहू मनमें सकुचानी ५२ त्यहि की समता सुन्दरता की यहिपुर नारिकोन वहिकाल । काह बतावों परदेशी में फूलन शयनकरै वह वाल ५३ त्यहिसाव फुलवाकी गाथामुनि ऊदन आगम गयो जनाय ॥ दक्षिण बाहू फरकन लाग्यो दहिने भई शारदा माय ५४ यादि आयगै फिरि माड़ो के जो कलुकहानिजेसिनिवाल॥