पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२५

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२० भाल्हखण्ड। कोऊ तहॉ नलकी पलकी साज सुन्दरतापर सेज लगावें। गावै कहाँलों कवीललिते फलिते रघुनाथके जे गुणगा७५ बन्दन करिके श्रीगणेश को दशरथ नन्दन हृदय मनाय।। तब हम गावे फिरि आल्हाको जामें काज सिद्धि देजाय ७६ सजा रिसाला घोड़नवाला लगभग तीसलाख अनुमान ॥ पन्द्रहलाख सजे. हाथी तहँ पतिसलाख सिपाहीमान ७७ साज सजि तो अष्टधातु की सोऊ होन लगी तय्यार ॥ बैल नहायेगे तोपन में गाड़िन गोला मेरे अपार ७८ हथी महावत हाथी लेके औ पृथ्वीमाँ देय बिठाय।। धरिकै सीढ़ी सॉखूबाली हौदा तिनपर देय चढ़ाय ७६. बारह कलशा सोनेवाले ते होदापर देय धराय ।। ड. अँगारी जिन हाथिन के तिनकीशोभाकही न जाय ८० को गति वरण तिन हाथिनकै घण्टा गरे रहे हहराय ॥ छाय अँधेरिया में दिल्ली में हाथी हाथी परें दिखाय ८१ अंगद पंगद मकुना मौरा सोहें श्वेत वरण गजराज ॥ मैनकुंज मलया पौरागिरि कहुँ दुइदन्ता रहे विराज ८२ सवैया ।। हाथिन के दल बादलसों नम छायगयो रजभानु लुकाने । मेरु समान महान सबै जिनके पदभार अहीश सकाने ॥ नाद करें तिन ऊपर बीर अधीर भये सुरराज छिपाने । ललिते गजराज लखमहराज तबै मनमें अतिही हपीने ८३ सजिगे हाथी जब सबियाँ तहँ घोड़ासजनलागि त्यहिकाल।। कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउकोउजातमोरकीचाल८४ रण की मौहरि बाजन लागी रएका होन लाग व्यवहार ॥