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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२५

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आल्हखण्ड।

कोऊ तहॉ नलकी पलकी सजि सुन्दरतापर सेज लगावैं।
गावैं कहाँलों कबीललिते फलिते रघुनाथके जे गुणगावैं ७५
बन्दन करिकै श्रीगणेश को दशरथ नन्दन हृदय मनाय॥
तब हम गावैं फिरि आल्हाको जामें काज सिद्धि ह्वै जाय ७६
सजा रिसाला घोड़नवाला लगभग तीसलाख अनुमान॥
पन्द्रहलाख सजे हाथी तहँ पैंतिसलाख सिपाही ज्वान ७७
सजि सजि तोपैं अष्टधातु की सोऊ होन लगी तय्यार॥
बैल नहायेगे तोपन में गाड़िन गोला मेरे अपार ७८
हथी महावत हाथी लैकै औ पृथ्वीमाँ देयँ बिठाय॥
धरिकै सीढ़ी सँखूवाली हौदा तिनपर देयँ चढ़ाय ७९
बारह कलशा सोनेवाले ते हौदापर देयँ धराय॥
डरैं अँगारी जिन हाथिन के तिनकीशोभाकही न जाय ८०
को गति बरणौ तिन हाथिनकै घण्टा गरे रहे हहराय॥
छाय अँधेरिया में दिल्ली में हाथी हाथी परैं दिखाय ८१
अंगद पंगद मकुना भौंरा सोहैं श्वेत बरण गजराज॥
मैनकुंज मलया धौरागिरि कहुँ दुइदन्ता रहे विराज ८२

सवैया॥

हाथिन के दल बादलसों नभ छायगयो रजभानु लुकाने।
मेरु समान महान सबै जिनके पदभार अहीश सकाने॥
नाद करैं तिन ऊपर बीर अधीर भये सुरराज छिपाने।
ललिते गजराज लखमहराज तबै मनमें अतिही हर्षाने ८३
सजिगे हाथी जब सबियॉ तहँ घोड़ासजनलागि त्यहिकाल॥
कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउकोउजातमोरकीचाल ८४
गुण की मौहरि बाजन लागी रणका होन लाग व्यवहार॥