पारस पत्थर तिनके घरमाँ उनकी रय्यति सबै निहाल १०३
बातैं सुनिकै ये मालिनि की फुलवा हुकुमदीन फरमाय॥
हार बनायो ज्यहि मालिनि है मोको बेगि दिखावै आय १०४
इतना सुनिकै मालिनि चलिभै मनमाँ बार बार पछिताय॥
ज्यों त्यों आई घर अपने को तहँपर मिले बनाफरराय १०५
हाल बनायो सब फुलवाको मालिनि बार बार समुझाय॥
मारे डरके पिंडुरी काँपैं जर्दी आनन परै दिखाय १०६
ऊदन बोले तब मालिनि ते काहे शोच करो अधिकाय॥
नई पुरानी जेवर लैकै हमको देउआय पहिराय १०७
देखन जैसे हम फुलवा को मालिनि मानो कही हमार॥
शंका लावो कछु जियरे ना तुम्हरो जाय न बांकोबार १०८
कौन दुसरिहा जग हमरो है जो तुम्हरे तन करै निगाह॥
निश्चय जानो अपने मनमाँ हमफलवाते करव बिवाह १०९
बातैं सुनिकै उदयसिंह की मालिनि शंका दीन भुलाय॥
तुरतै गहना को लै आई पहिरनलागलहुरवाभाय ११०
मिस्सी रगरी सब दाँतन में तापर लीन्ह्यो पान चवाय॥
काजल आँज्यो दोउ नैनन में शोभा कही बूत ना जाय १११
बेंदी बँदनी टीका तीनों मस्तक ऊपर धरा सँवार॥
करनफूल कानन में पहिरा तामें गुज्झी करैं बहार ११२
मोहनमाला मोतिनमाला पहिरे और फुलनके हार॥
बाजू जोसन टाड़ै तीनों दोऊभुजा पहिरि सरदार ११३
नीले रँगकी चुरियाँ पहिरी गोरे हाथनका शृङ्गार॥
अगे अगेला पिछे पछेला तिनबिचककनाकरैंवहार ११४
छल्ले पहिरे सब अँगुरिन में अँगुठा लीन आरसी धार॥
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उदयसिंहका बिवाह। २४६
