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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२५६

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उदयसिंहका बिवाह। २५३

राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १५१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना-
रायणनीकी आज्ञानुसारउन्नामपदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भवबुध
कृपाशंकरसूनु पं॰ ललिनाप्रसादकृत ऊदनफुलवामिलाप
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥


सवैया॥

कौन कि आश सुपासमिलै नितहोत मनैमन याहि बिचारा।
आशकि पाश सुपास कहाँ यह सोचत मोचत दुःख अपारा॥
भीरपरी यहि लोकहिकि शिर शास्त्र औ वेद पुराण निहारा।
बाम भये रघुनाथ सों साँच करै ललिते फिरि कौन उबारा १

सुमिरन॥


मैं पद बन्दौं रिपुसूदन के लवणासुरै पराजय कीन॥
मानों शत्रुन के जीतै को साँचो जन्म शत्रुहन लीन १
काटिकै मधुवन पुरी बसायो मथुरापुरी परा त्यहि नाम॥
अश्वमेध में सब जग जीत्यो कीन्ह्यो शम्भु साथ संग्राम २
छोटे भाई लपणलाल के साँचे भये भरत के दास॥
इन यश बरणा अश्वमेध में पूरण भई हमारी आश ३
मातु सुमित्रा के बालक ये जग में भये सुयश की राश॥
जो कोउ सुमिरै रिपुसूदन का साँचो करै प्रेम विश्वास है
प्यारो होवे रघुनन्दन का सॉचो स्वई रामको दास॥
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब ऊदन ब्याह करों परकाश ५

अथ कथाप्रसंग॥


उये दिवाकर जब पूरब में बालकरूप विम्ब अतिलाल॥