बेटी फुलवा के महलन में जागा देशराजका लाल १
देबा बोला ह्याँ हिरियाते मालिनि मानो कही हमार॥
देर लगावो अब घरमाँ ना लावो उदयसिंह सरदार २
लैकै पलकी मालिनि चलि भै फुलवा पाम पहूँची जाय॥
फुलवा बोली तब हिरियाते अब यहि जावो तुरत लिवाय ३
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे पहुँचे तुरत द्वार में आय॥
बैठ पालकी में बघऊदन मनमें सुमिरि शारदामाय ४
आयकै पहुँचे जब मालिनिघर देबा बोला वचन सुनाय॥
साथ जनाना का करिवे ना जैबे जहाँ चँदेलाराय ५
बन्यो जनाना तुम नरवर में कैहौं हाल जाय दरवार॥
बाना छोड़े रजपूती का ऊदन जीवेका धिक्कार ६
इतना सुनतै कायल ह्वैगा नाहर उदयसिंह सरदार॥
पेट मारने के कारण सों ऊदन लीन्ही हाथ कटार ७
हाथ पकरिकै देबाठाकुर बोला सुनो बनाफरराय॥
चरचा करिये ना मोहबेमाँ ऊदन साँच देवँ बतलाय ८
भई लालसा हमरे मनमाँ फुलवा देखनको अधिकाय॥
करु अभिलाषा पूरण हमरी आल्हाकेर लहुरवा भाय ९
ऊदन बोले तब देबाते तुमको कैसे लवैं दिखाय॥
जैसी बतावो देवा ठाकुर तैसे साँचो करैं उपाय १०
इतना सुनिकै देबा बोले योगी बनो बनाफरराय॥
अलख जगावैं पुर घर घर में याही सीधोसाद उपाय ११
गह मनमाई बधऊदन के दूनों लीन्ह्यो भस्म रमाय॥
करगें माला औ मृगछाला आला योगीरूप बनाय १२
गुदड़ी लोन्ही दोऊ ठाकुर तामें छिपी ढाल तलवार॥
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आल्हखण्ड। २५४
