पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२५८

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उदयसिंहका विवाह । २५५ डमरू लीन्यो देवा गकुर बंशी उदयसिंह सरदार १३ धुरपद, सोरठ, जैजैवन्ती, गावें पूरराग कल्यान ।। टप्पा ठुमरी भजन रेखता तो गजल पर्ज पर तान १४ को गति वरणे तिन योगिनकै एकते एक रूप गुणवान ।। योढ़ी दावे दोउ नरपति के योगी चले तुरत बलवान १५ देखि तमाशा तिन योगिनका मारग भीर भई अधिकाय ।। ता' ता थेई ता ता थेई थेई थेई दीन मचाय १६ वाजे डमरू भल देवा का ऊदन बंशी रहा बजाय ।। मोर कि नाचन ऊदन नाचे मारग भूलि गये सबभाय १७ मोही तिरिया भल नरवर की चढ़िचढ़ि लखें अटारिनाय ॥ एक एक सों बोलन लागी जैसे नारिन केर स्वभाय १८ धन्य वखानों इन मातन को जिनकी कोखिलीनअवतार ॥ देखो पाली इन योगिन को कैसो रूप दीन करतार १६ ये दोउ बालक क्यहु राजा के बारे लीन योग को धार ॥ सब गुण आगर दोउ नागर हैं योगी कामरूप अवतार २० क्यहू पियासे लरिका घर में भोजन करें क्यहू भरतार ।। 4 ते भूलीं दोउ योगिन में तन मन केरो नहीं सँभार २१ गावत नाचत दोऊ योगी पहुँचे नरपति के दरबार ।। बाजा डमरू तहँ देवा का नाचा दुल का असवार २२ कमर झुकाचे भाव बतावै गावै देशराज का लाल । देखि तमाशा यहु योगिन का भा मनबड़ा खुशीनरपाल २३ नरपति बोला तब योगिन ने साँचे हाल देउ बतलाय ।। कहाँ ते आयो औ कहै जहाँ चाही काह लेनको भाव २४ हम तो आये चंगाले ते ना गिज्ञान महान ।।