पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२५९

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८ आल्हखण्ड । २५६ द्रव्य न चाहें का महराजा केवल उदरभरनसों काज २५ सुनिक वाते ये देवा की बोला नरवरका सरदार ॥ धुरपद गावो यहि समया में भोजन अवे होय तय्यार २६ बातें सुनिक महराजा की वोला देशराज का लाल ॥ व्याही नारी के हाथे का भोजन करें नहीं नरपाल २७ इतना सुनिकै राजा बोले योगी मानो कही हमार ।। है जो कन्या उपरोहित के भोजन सोई करी तैयार २८ देवा-वोला तब राजा ते यह नहिं ठीक भूमिभरतार ।। जरिजा अँगुरी जो वाम्हनिकै हमरो योगहोय सब छार २६ शास्त्र पुराणन को जानें हम माने लिखा ठीक महराज ॥ मारै शापै गारी देवे तवहूँ विप्र पूजने काज ३० होय जो कन्या तुम्हरे घर की भोजन करें स्वई तैयार ॥ तो तो योगी भोजन करि हैं, नाहीं मांगें और दुवार ३१ इतना सुनिकै फिरि बोलत मा राजा नरवर का सरदार॥ बेटी हमरी जो फुलवा है सोई भोजन करी तयार ३२ इतना सुनिकै योगी बोले यहही ठीक रहा. महराज ॥ धर्म नहै कछु योगिन का रहि है दऊ दिशाकीलाज ३३ पुत्र आपने मकरन्दा को तवहीं बोलि लीन नरपाल । फुलवा बहिनी जो तुम्हरी है तासों कहौजाय यह हाल ३४ इतना सुनिकै मकरंद चलिभा औ फुलवा ते कहा सुनाय॥ बातें सुनि है मकरन्दा की माता पास पहूँची आय ३५ आयसु लेकै महतारी की भोजन करन लागि तैयार। ना, गावें दोऊ योगी मोहित भयो राजदरबार ३६ भयो बुलौवा फिरि महलन में योगी करें चलें ज्यउनार॥