ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ८५
कूच के डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
को गति बरणै त्यहि समया कै एकते एक सुघरूवा ज्वान ८६
हुकुम पाय कै कान्ह कुँवरको हिरसिंह कूच दीन करवाय॥
आगे हलका भा हाथिन का पाछे चला रिसाला जाय ८७
चले सिपाही त्यहि पाछे सों एक सों एक दई के लाल॥
खर खर खर खर कै रथ दौरैं रब्बा चलैं हवा की चाल ८८
जैसे नदियाँ चलैं समुंदर तैसे चली फौज त्यहि काल॥
डगमग डगमग पृथ्वी हाली मारग बासी भये बिहाल ८९
शूर सिपाही ईजति वाले दहिनी धरैं मूछ पर हाथ॥
मनै मनावैं रामचन्द्र को बारम्बार नाय कै माथ ९०
कायर सोचैं यह मनमाँ सब लैकै बड़ी बड़ी तहँ श्वास॥
हम मरिजइबे समरभूमि में होई वंश हमारो नाश ९१
हम भगिजावैं जो रस्ताते तोहू नहीं जीव की आश॥
लौटि पिथौरा जब घर जैहै करि है अवशिहमारो नाश ९२
कुंडलिया॥
यारो सायर दशभले कायर भले न पचाश।
सायर रणसम्मुख लड़ैं कायरप्राण कि आश॥
कायर प्राण कि आश भागि रणते ह्वैआवैं।
आपु हँसावहिं और कुटुँब को नाम धरावैं॥
कहि गिरिधरकबिराय बातचारहुयुग जाहिर।
सायर भलेहैं पांच संग सौ भले न कायर ९३
ऐसे कायर सब सोवत भे जिनकी कही कथा ना जाय॥
परैं नगारन में चोटैं जब उनके होयँ करेजे घाय ९४