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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६०

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उदयसिंहका विवाह। २५७

इतना सुनिकै योगी चलिभे पीढ़न बैठिगये सरदार ३७
भोजन परसन फुलवा लागी देवा चितय दीन कइबार॥
बैठे पाटापर बघऊदन मनमाँलाग्यो करनबिचार ३८
किह्यो रसोई कारी कन्या भोजन केर नहीं अधिकार॥
बनि बौराहा जो हम जावैं तौ रहिजावै धर्म हमार ३९
देबा बोला फिरि ऊदन ते यहही फुलवा है सरदार॥
इनही कारण नाक छिदायो धार्यो बेष जनाना यार ४०
किह्यो बहाना ह्याँ ऊदन ने औ गिरि गयो पछाराखाय॥
रानी चंपा दौरति आई योगिन पास पहूँची आय ४१
कौर डारिकै देबा योगी तहँपर बार बार पछिताय॥
देखिकै सूरति लघुयोगी कै चंपा बोली बचन सुनाय ४२
पाप आयगा यहिके मनमाँ ताते गिरा पछाराखाय॥
योगी नाहीं यहु भोगी है यहिका डारों पेट फराय ४३
मकरँद लरिका का बुलवावों यहिका योग सिद्ध ह्वैजाय॥
इतना सुनिकै देबा बोला रानी काह गई बौराय ४४
भूत चुरैलै यहि महलन में की क्यहु नजरि लगाई आय॥
जो कछु होई यहिके जीका तौ फिरि योग देयँदिखराय ४५
ऐसे वैसे हम योगी ना ना हम मँगें खेत खरिहान॥
हमतो योगी संतोषी हैं जाने काह नारि बैलान ४६
सुनिकै बातैं ये देवा की रानी गई सनाकाखाय॥
जल के छीटा फुलवा मारे जागा तुरत बनाफरराय ४७
बड़ी खुशाली देबा कीन्ह्यो लीन्यो तुरत ताहि लपटाय॥
ऊदन बोले तब रानी ते तुमका साँचदेयँ बतलाय ४८
परिगै छाया क्यहु ब्याही के ताते गई मूरछा आय॥