पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६१

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आल्हखण्ड। २५८ फुलवा बोली तब माताते योगी साँचरहा बतलाय ५६ परिगे छाया जब बाँदी के तयहीं गिरा मूरचाखाय ।। ऊदन बोले तब रानी ते डाँते जान चहैं हम माय ५० इतना सुनिकै चम्पा बोली योगी मानो कही हमार।। भोजन दूसर हम परसा योगी जेयलेउ ज्यवनार ५१ देवा बोला तव रानी ते साँचे वचन करो परमान॥ फिरिके बैठे हम चौकाना पूरण नियम हमारो जान ५२ ऐसे योगी आगे है हैं भोगिहँ भोगस्वादवश आय ।। तैसे योगी हम नाहीं हैं अपनो डारै नियम नशाय ५३ योगी कैकै भोगी होवे शोचन योग सोय अधिकाय ।। इतना कहिके दोऊ योगी माँगिकै विदा चले हर्षाय ५४ आयकै पहुँचे मालिनि घरमाँ योगिनवाना धरे उतार ।। पाग बैंजनी शिरपर बाँधी नाहर उदयसिंह सरदार ५५ ऊदन बोले फिरि देवा ते ठाकुर मैनपुरी चौहान ।। कई महीना ह्यापर गुजरे ना अब रहिगा द्रव्यठिकान ५६ घोड़ खरीदन कासों जावें यहही शोच होय अविकाय ।। पे कछु औपधि ह्याँ सूझना कैसी करी यहांपर भाय ५७ का लै जावे अब मोहवे को कावुल काह खरीदें जाय । इतना सुनिक देवा वोले धीरज धरो लहुवाभाय ५८ गत नहिंशोचें कहुँ पण्डितजन मत यह ठीक हृदय ठहराय॥ कूच करावो अब नखरते चलिये नगरमोहोबे भाय ५६ यह हम कहिवे परिमालिकते नरवर टिल्यन देलेराय ।। भूत गते इनके लोगी जदन तहां गये बौराय ६० कबु नहि आशा तह वचनेकी निश्चय गई बाप आय ।।