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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६२

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उदयसिंहका बिवाह। २५९

कीन दवाई हम ऊदन की सब धन आये तहाँ गँवाय ६१
यह मन भाई उदयसिंह के तुरतै कूच दीन करवाय॥
कीरतिसागर के डाँड़े पर पहुंचे फेरि बनाफर आय ६२
उतरि बेंदुला ते भुइँ आये तम्बू तुरत दीन गड़वाय॥
परिगा पलँगा तहँ ऊदन का लेटे तहाँ बनाफरराय ६३
उबटन लाग्यो भल हल्दी का पीली देह परै दिखराय॥
भोजन कमती कैदिन खायो तासोंबदनगयो कुम्हिलाय ६४
करिकै सूरति बीमरिहा कै बोला उदयसिंह सरदार॥
बात बनावो परिमालिक ते तौ रहिजावै धर्म हमार ६५
गंगा कीन्ही हम फुलवा सँग तुम्हरो ब्याह करब ह्याँ आय॥
टरै प्रतिज्ञा जो क्षत्री कै तौफिरि जहरखाय मरिजाय ६६
मित्र साँकरो फिरि ऐसो अब परिहै बार बार नहिं आय॥
इतना सुनिकै देबा चलिभा पहुंचा जहाँ चँदेलोराय ६७
सूरति दीख्यो जब देबा की भा मन खुशी रजापरिमाल॥
हाथ जोरिकै देबा बोल्यो औ ऊदनके कह्यो हवाल ६८
लगीं चुरैले नखरगढ़ में ऊदन ह्वैगे हाल बिहाल॥
रुपिया पैसा सब खर्चा भे रहिगा कछू नहीं नरपाल ६९
कीरतिसागर तम्बू भीतर ब्याकुल परा लहुरवाभाय॥
इतना सुनिकै परिमालिक जी तुरतै गये सनाकाखाय ७०
लिखिकै पाती आल्हाजी को तुरतै धावन लीन बुलाय॥
दैकै पाती फिरि धावन को बाकी हाल कह्यो समुझाय ७१
लेकै पाती धावन चलिभा दशहरिपुरै पहूंचा जाय॥
दीन्ह्यो पाती जब आल्हा को बाँचा आंकु आंक निरताय ७२
पढ़िकै पाती आल्का ठाकुर तुरतै हाथी तीन मँगाय॥