पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६२

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उदयसिंहका विवाह । २५६ कीन दवाई हम ऊदन की सब धन आये तहाँ गँवाय ६१ यह मन भाई उदयसिंह के तुरतै कूच दीन करवाय ॥ कीरतिसागर के डाँड़े पर पहुंचे फेरि बनाफर आय ६२ उतरि वेंदुला ते भुइँ आये तम्बू तुरत दीन गड़वाय ।। परिगा पलँगा तहँ ऊदन का लेटे तहाँ बनाफरराय ६३ उबटन लाग्यो भल हल्दी का पीली देह परै दिखराय ॥ भोजन कमती कैदिन खायो तासोबदनगयो कुम्हिलाय ६४ करिके सूरति बीमरिहा के बोला उदयसिंह सरदार ।। चात वनावो परिमालिक ते तो रहिजा धर्म हमार ६५ गंगा कीन्ही हम फुलवा सँग तुम्हरोब्याह करव ह्याँ आय।। टेरै प्रतिज्ञा जो क्षत्री के तौफिरि जहरखाय मरिजायं ६६ मित्र साँकरो फिरि ऐसो अब , परिहै बार बार नहिं आय ।। इतना सुनिकै देवा चलिभा पहुंचा जहाँ चंदेलोराय ६७ सूरति दीख्यो जब देवा की भा मन खुशी रजापरिमाल ।। हाथ जोरिक देवा बोल्यो औ ऊदनके कह्यो हवाल ६८ लगीं चुरैले नखरगढ़ में ऊदन ढगे हाल बिहाल ।। रुपिया पैसा सब खर्चा मे रहिगा कळू नहीं नरपाल ६६ कीरतिसागर तम्बू भीतर व्याकुल परा लहुरवाभाय ।। इतना सुनिकै परिमालिक जी तुरते गये सनाकाखाय ७० लिखिकै पाती आल्हाजी को तुरतै धावन लीन बुलाय ।। दे पाती फिरि धावन को बाकी हाल कह्यो समुझाय ७१ लेकै पाती धावन चलिभा दशहरिपुरै पहूंचा जाय । दीन्हो पाती जब आल्हा को बाँचा आंकु आंक निरताय ७२ पदिके पाती भारदा ठाकुर तुरतै हाधी तीन मँगाय ॥