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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६४

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उदयसिंहका बिवाह। २६१

जायकै देखैं जब ऊदन को रोवैं तहाँ बृद्ध औ बाल ८५
गई पालकी जब आल्हा की चकरन जाय कहा सब हाल॥
सुनवाँ भौजीने बुलवायो चलिये देशराज के लाल ८६
हमसोंफिरिफिरि यह समुझायो आवैं यहाँ लहुरवाभाय॥
करब दवाई हम नीकी बिधि चंगे होयँ बनाफरराय ८७
सुनिकै बातैं ये चकरन की ऊदन ठीक लीन ठहराय॥
हाल बतावब जो भौजीते ह्वैहैं काम सिद्धि तहँ जाय ८८
यहै सोचिकै मन अपने माँ पलकी चढ़ा लहुरवाभाय॥
चारि कहरवा हुँकरत चलिभे दशहरिपुरै पहूंचे आय ८९
उतरि पालकी ते भुइँ आवा द्दावलि देखिगई घबड़ाय॥
रानी सुनवाँ तहँ चलिआई औ करगहिकै गईलिवाय ९०
जायकै पहुंची निजमहलन में पलँगा उपर दीन बैठाय॥
पूँछन लागी बघऊदन ते साँचे हालदेउ बतलाय ९१
आँखि लागिगै का फुलवा कै द्यावर बिकलभयो अधिकाय॥
सुनिकै बातैं ये भौजीकी बोला तुरत बनाफरराय ९२
जैसे साँची तुम पुछती हौ तैसे साँच देयँ बतलाय॥
किरिया कीन्ही हम फुलवा ते भौंरी करब तुम्हारी आय ९३
काह बतावैं हम भौजी ते नाकछु सूझा और उपाय॥
तब बौराहा बनिकै आयन तुमते साँचदीन बतलाय ९४
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली साँची सुनो लहुरवामाय॥
काठक घोड़ा वाण अजीता उनघर सेल शनीचर आय ९५
कैसे किरिया तुम कै लीन्ही देवर भूल भई अधिकाय॥
तेहिते चुप्पे घरमाँ बैठो मानो कही बनाफरराय ९६
वैसी फुलवा लाखन मिलि हैं भापन साँच लहुरवा भाय॥