यह नहिं भाई मन ऊदन के सुनतैबदनगयोकुम्हिलाय ९७
जब रुख दीख्यो यह ऊदन का सुनवाँ चली महलते धाय॥
जायकै पहुँची आल्हाढिगमाँ औसबहालकहा समुझाय ९८
सुनिकै बोले आल्हा ठाकुर तिरिया काहगई बौराय॥
बेढव राजा है नरवर का तहँ शिर कौन कटावै जाय ९९
इतना सुनिकै सुनवाँ वोली क्षत्री पूत बनाफरराय॥
तुमका बातैं ये छाजैं ना कन्ता बार बार बलिजायँ १००
इतना सुनिकै आल्हा बोले तिरिया बिना बुद्धिकी आय॥
नाहक हिंसा हम करिहैं ना मरिहैंजीवजन्तुअधिकाय १०१
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
यह नहिं हिंसा है क्षत्री कै कीन्हेनियुद्धकृष्णयदुराय १०२
सोलह सहस आठ कन्यन को लड़िकै लीन कृष्ण महराज॥
तिनकी बहिनी के पति अर्जुन कीन्हेनियुद्धद्रौपदीकाज १०३
धर्म धुरंधर भीषम ह्वैगे लड़िगे काशिराज घरजाय॥
अम्बा अम्बे अम्बालिका को लायेजीतिनृपनसमुदाय १०४
पैकछु हिंसा तिन मानी ना जानैं धर्म कर्म अधिकाय॥
पढ़िकै भूल्यो तुम महराजा कीयहिअवसरगयोडेराय १०५
लड़नो मरनो समरभूमि में यहही क्षत्री को बयपार॥
लहँगा लुगरा हमरो पहिरो अपनी देउ ढाल तलवार १०६
मैं चढिजाऊँ नरवरगढ़ को ब्याहूं जाय लहुरवाभाय॥
किरिया कीन्ही बघऊदन ने भौंरी करव यहाँपर आय १०७
झूँठी किरिया जो ह्वैजैहै तौ मरि जाय जहर को खाय॥
ऐसो वैसो बघऊदन ना गंगा झूँठ उलीचै जाय १०८
उदय दिवाकर हों पश्चिम में चन्दा चहौ रसातल जाय॥
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आल्हखण्ड। २६२
