पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६५

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. आल्हखण्ड। २६२ यह नहिं भाई मन ऊदन के सुनतेवदनगयोकुम्हिलाय ६७ जब रुख दीख्यो यह ऊदन का सुनवाँ चली महलते धाय ॥ जायकै पहुँची आल्हाढिगमाँ औसबहालकहा समुझाय सुनिकै बोले आल्हा ठाकुर तिरिया काहगई चौराय ॥ बेढव राजा है नरवर का तहँ शिर कौन कटावै जाय ६६ इतना सुनिकै सुनवाँ वोली क्षत्री पूत बनाफरराय॥ तुमका बात ये छाले ना कन्ता वारवार बलिजाय १०० इतना सुनिकै आल्हा बोले तिरिया विना बुद्धिकी आय ॥ नाहक हिंसा हम करिह ना मरिहँजीवजन्तुअधिकाय१०१ इतना सुनिकै सुनवाँ बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥ यह नहिं हिंसा है क्षत्री के कीन्हेनियुद्धकृष्णयदुराय१०२ सोलह सहस आठ कन्यन को लड़िकलीन कृष्ण महराज॥ तिनकी बहिनी के पति अर्जुन कीन्हेनियुद्धद्रौपदीकाज १०३ धर्म धुरंधर भीषम हगे लड़िगे काशिराज घरजाय ।। अम्बा अम्बे अम्बालिका को लायेजीतिनृपनसमुदाय १०४ पैकछु हिंसा तिन मानी ना जाने धर्म कर्म अधिकाय ।। पदिकै भूल्यो तुम महराजा कीयहिअवसरगयोडेराय १०५ लड़नो मरनो समरभूमि में यहही क्षत्री को बयपार ॥ लहँगा लुगरा हमरो पहिरो अपनी देउ ढाल तलवार १०६ मैं चढिजाऊँ नरवरगढ़ को व्याहू जाय लहुखाभाय ॥ किरिया कीन्ही बघऊदन ने भौंरी करव यहाँपर आय १०७ (ठी किरिया जो हैजैहै तो मरि जाय जहर को खाय ।। ऐसो वैसो बघऊदन ना गंगा (ठ उलीचे जायं १०८ उदय दिवाकर हो पश्चिम में चन्दा चहौ रसातल जाय।