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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७

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आल्हखण्ड।

शूर सिपाही बाजा सुनि सुनि मनमाँ अधिक अधिक हरपायँ॥
मारु मारु कै कोउ बोलत भे कोऊ दांतन ओठ चबायँ ९५
या बिधि फौजैं सब दिल्ली की दाबति चली कनौजै जायॅ॥
आठ दिनौना के अर्सा में पहुंची जहॉ पिथौराराय ९६
देखिकै फौजैं दिल्ली वालो ठाकुर समरधनी चौहान॥
गले लगायो फिर हिरसिंह को कीन्ह्योबहुतभांति सनमान ९७
गोबिंद राजै कान्ह कुँवर को भेंटन भयो पिथोराराय॥
कुँजधर ठाकुर और मुकुन्दा येऊ मिले शीश को नाय ९८
तम्बू गाडगे महराजन के डेरा गड़े सिपाहिन केर॥
बीचम तम्बू पृथुइराज को चारो तरफ रहे सब घेर ९९
गड़िगे झण्डा सब तम्बुन ढिग ते सब आसमान फहरायँ॥
को गति बरणै तिन झण्डन कै हमरे वूत कही ना जाय १००
तंग बछेड़न के छूटतमे क्षत्रित छोरिधरा हथियार॥
ह्याँ महराजा कनउज वाला आला शूरवीर सरदार १०१
बहु ढुँढवावा त्यहि पिस्थी का पापा कतों न पता निशान॥
तब बुलवावा फिरि मंत्री को करिकै बहुतभांति सनमान १०२
हम सुनिपावा हरकारा सों मंत्री सुनो बचन धरिध्यान॥
चढिकै आवा दिल्लीवाला ठाकुर समरधनी चौहान १०३
काल्हि सबेरे संगर ह्वैहै सीताराम लगईहैं पार॥
पुरमें डौंड़ी को बजवावो सबियाँ होय फौज तय्यार १०४
सुनिकै बातैं महराजा की मंत्री चला शीशको नाय॥
जाय नगरची को बुलवायो ताको दीन्ह्यो हुकुमसुनाय १०५
ब्यारी करिकै फिरि संध्याको सोये तुरत पलॅगपर जाय॥
यहु महराजा कनउजवाला सोऊ महल पहूँचाजाय १०६