पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्ह खण्ड शूर सिपाही वाजा सुनि सुनि मनमाँ अधिकाधिक हरपाय।। मारु मारु के कोउ बोलत मे कोऊ दांनन ओठ चबायें ५ या विधि फौजें सब दिल्ली की दावति चली कनों जाय।। आठ दिनौना के असी में पहुंची जहाँ पिथोराराय ६६ देखिकै फौजें दिल्ली वालो ठाकुर समरधनी चौहान ।। गले लगायो फिर हिरसिंह को कीन्योबहुतभांति सनमान६७ गोविंद राजै कान्ह कुँवर को मेंटन भयो पिथोराराय ।। कुँजधर ठाकुर और मुकुन्दा येऊ मिले शीश को नाय : तम्बू गाडगे महराजन के डेरा गड़े सिपाहिन केर।। बीचम तम्बू पृथुइराज को चारो तरफ रहे सब घर ६६ गड़िगे झण्डा सब तम्बुन दिग ते सब आसमान फहराय ।। को गति बरणै तिन झण्डन के हमरे वून कही ना जाय १०० तंग बछेड़न के छूटतमे क्षत्रिन छोरिधरा हथियार ॥ ह्याँ महराजा कनउज वाला आला शूरवीर सरदार १०१ बहु हुँढवाचा त्यहि पिस्थी का पापा कतों न पता निशान ॥ तब बुलवावा फिरि मंत्री को करिकै बहुतभांति सनमान१०२ हम सुनिपावा हरकारा सों मंत्री सुनो बचन धरिध्यान ।। चढिके आवा दिल्लीवाला ठाकुर समरधनी चौहान १०३ काल्हि सबेरे संगर द्वैहे सीताराम लगईहैं पार॥ पुरमें डॉडी को बजवावो सबियाँ होय फौज तय्यार १०४ सुनिक वांत महराजा की मंत्री चला शीशको नाय ।। जाय नगरची को बुलवायो ताको दीन्यो हुकुमसुनाय१०५ न्यारी करिके फिरि संध्याको सोये तुरत पलॅगपर जाय ॥ यड महराजा कनउजवाला सोऊ महल पहूँचाजाय १०६