{{block center|
इतना सुनिकै द्वारपाल कह बारी घोड़े के असवार १५७
नेग बतावो तुम द्वारे का राजै स्वऊ सुनावैं जाय॥
इतना सुनिकै रूपन बोला तुमसों साँचदेयँ बतलाय १५८
चार घरीभर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्तकी धार॥
नेग हमारो यह साँचाहै याँचा आय तुम्हारे द्वार १५९
सुनिकै बातैं ये रूपन की बोला ललिपाल ततकाल॥
पीकै दारू द्वारे आये टेढ़ी बात कहै मतवाल १६०
टरिजा टरिजा अब द्वारे ते ओ मतवाले जाति गँवार॥
असगति नाहीं क्यहुराजा की द्वारे करै आय तलवार १६१
काल गाल माँ तू बैठाहै मानै साँच बात यहिबार॥
हवा खायकै ठंढे ह्वैकै बोलै घोड़े के असवार १६२
इतना सुनिकै रूपन बोला गरूई हाँक दीन ललकार॥
हाथ सिपाही पर डारैं ना जबलग मिलै ढूंढ़िसरदार १६३
हमका जानैं दिल्ली वाले जिनके द्वारकीन तलवार॥
झुन्नागढ़ औ नैनागढ़ में द्वारे बही रक्तकी धार १६४
चारि रुपल्ली का नौकर तू टिलटिलटिलटिल रहामचाय॥
इतना सुनिकै द्वारपाल चलि राजै खबरि सुनाई जाय १६५
जितनी गाथा रूपन बोले गासो यथातथ्य सब गाय॥
सुनिकै बातैं द्वारपाल की नरपति तुरतै उठा रिसाय १६६
हुकुम लगायो मकरन्दा ते बारी पकरि दिखावै आय॥
विजयसिंह बिजहट को राजा मकरँदसाथचलारिसियाय१६७
द्वारे दीख्यो जब रूपन को गरूई हाँक दीन ललकार॥
खबरदार हो खबरदार हो बारी घोड़े के असवार १६८
काल गाल माँ तू बैठा है अवहीं जान चहत यमद्वार॥