इतना सुनिकै विजयसिंहने अपनी खैंचिलई तलवार १६९
खैंचि सिरोही रूपन लीन्यो द्वारे होन लगी तब मार॥
अगल बगल में बेंदुल मारै रूपन खूब कीन तलवार १७०
घायल ह्वैगे विजयसिंह जब तब सब बढ़े लड़ैया ज्वान॥
दांतन काटै टापन मारै बेंदुल खूब कीन मैदान १७१
कोगति बरणै तहँटा बनेकै दोऊ हाथ करै तलवार॥
रंग बिरंगे क्षत्री ह्वैगे मानो होलीख्यलैं गँवार १७२
कितन्यों क्षत्री घायल ह्वैगे कितन्यों गिरिगे खाय पछार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डनके लगे पहार १७३
बड़ी लड़ाई भै रूपन ते द्वारे बही रक्तकी धार॥
देखि तमाशा त्यहि बारीका क्षत्री गये मनैमन हार १७४
ऍड़ा मसक्यो फिरि बेंदुलके फाटक पार पहूँचा जाय॥
मारो मारो हल्ला कैकै क्षत्री चले पछारी धाय १७५
रूपन पहुॅचा त्यहि तम्बू में जहँपर बैठि बनाफरराय॥
जितने क्षत्री नरवरगढ़के आयेलौटि सबैखिसियाय १७६
जितनी गाथा रह द्वारे की रूपन यथातथ्य गा गाय॥
रूपन बारी की बातैं सुनि भे मन खुशी बनाफरराय १७७
खेत दूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय॥
तारागण सब चमकन लागे संतनधुनी दीन परवाय १७८
माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँ ते करों तरँगको अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं माँगों यही भवानीकन्त १७९
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसारउनाममदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि
मिश्रवंशोद्भवबुधकृपाशंकरसनुपं॰ललिताप्रसादकृवरूपनबिजन
वर्णनोनामद्वितीयस्वरंगः ॥२॥