पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७१

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आल्हखण्ड। २६ इतना सुनिक विजयसिंहने अपनी खेचिलई तलवार १६६ बँचि सिरोही रूपन लीन्यो द्वारे होन लगी तब मार ।। अगल बगल में बेंदुल मारै रूपन खूब कीन तलवार १७० ' घायल द्वेगे विजयसिंह जब तब सब बढ़े लडैया ज्वान ॥ दांतन काटै टापन मारै बेंदुल खूब कीन मैदान १७१ कोगति वरणै तहटा वनकै दोऊ हाथ करें तलवार ।। रंग बिरंगेत्रो द्वैगे मानो होलीख्यले गँवार १७२ कितन्यों क्षत्री घायल हगे कितन्यों गिरिगे खाय पछार॥ मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डनके लगे पहार १७३ बड़ी लड़ाई मै रूपन ते दारे बही रक्तकी धार ।। देखि तमाशा त्यहि बारीका क्षत्री गये मनैमन हार १७४ ऍड़ा मसक्यो फिरि बेंदुलके फाटक पार पहूँचा जाय ।। मारो मारो हल्ला कैकै क्षत्री चले पछारी धाय १७५ रूपन पहुँचा त्यहि तम्बू में जहँपर बैठि बनाफरराय ।। जितने क्षत्री नरवरगढ़के आयेलौटि सवैखिसियाय १७६ जितनी गाथा रह दारे की रूपन यथातथ्य गा गाय।। रूपन वारी की बातें सुनि बातें सुनि भे मन खुशी बनाफररांय १७७ खेत दूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय ॥ तारागण सब चमकन लागे संतनधुनी दीन परवाय १७८ . माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँ ते करों तरँगको अन्त ॥ राम रमा मिलि दर्शन दे माँगों यही भवानीकन्त १७६ वि श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज चानू यागनारायणजीकीआज्ञानुसारउनाममदेशान्तर्गतदरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भवबुधकृपाशंकरसनुपं०ललितामसादकवरूपनदिजन वर्णनोनामद्वितीयस्वरंगः ॥२॥