पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७२

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$ उदयसिंहका विवाह । २६६ सवैया।। दीनदयाल कृपाल भुवाल तुम्हीं सब काल करो रखवारी । मारीच सुबाहु सुरासुरनाहु तुम्ही पल एकहि में संहारी॥ बालिवली खरदूपण रावण आप हन्यो सबको धनुधारी। काम औक्रोध औ लोभ हटाय करो ललिते रघुनाथ सुखारी? सुमिरन ।। दोउ पद वन्दौं भरतलालके जिनसमधन्यजगतकोआन। बड़े पियारे रघुनन्दन के इनयशबालमीकि करगान १ भायप निवह्यो जस भारत जग आरत भये रामसों जाय ।। राज्य न लीन्ही रघुनन्दन जब आपो कीन योग घर आय २ सब जग ध्यावै रघुनन्दन को रघुवर करें भरतको याद ।। रघुवर लछिमन भरत शत्रुहन चहु ज्यहि भजें छांडिके बाद ३ जो ज्यहि भावै सो त्यहि ध्यावै आवै सबै आपने काज। क्यहू न ध्यावे सो दुखपावै औ वड़ होवै तासु अकाज ४ हमरे सर्वोपरि एकै हैं स्वामी रामचन्द्र महराज ।। तिन्हें विसारै तो दुखपावें यह मन सदा हमारे राज ५. छूटि सुमिरनी गै रघुवर के सुनिये नरवर केर हवाल। ब्याह बखाने उदयसिंह का लड़िहें बड़े बड़े नरपाल ६ अथ कथामसंग ॥ नरपति राजा नरवरगढ़ का भारी लाग राजदरबार ।। 'बैठे क्षत्री अलबेला तहँ एकते एक शूर सरदार १ नरपति बोला मकरन्दा ते तुम सुत मानो कही हमार ।। बड़े लड़ेया मोहवेवाले बारी भली कीन तलवार २ काह तुम्हारे अब मनमाँ है हमवे साँच देउ बतलाय ।