सवैया॥
दीनदयाल कृपाल भुवाल तुम्हीं सब काल करो रखवारी।
मारीच सुबाहु सुरासुरनाहु तुम्हीं पल एकहि में संहारी॥
बालिवली खरदूपण रावण आप हन्यो सबको धनुधारी।
काम औ क्रोध औ लोभ हटाय करो ललिते रघुनाथ सुखारी१
सुमिरन॥
दोउ पद वन्दौं भरतलालके जिनसम धन्यजगतकोआन॥
बड़े पियारे रघुनन्दन के इनयशबालमीकि करगान १
भायप निबह्यो जस भारत जग आरत भये रामसों जाय॥
राज्य न लीन्ही रघुनन्दन जब आपौ कीन योग घर आय २
सब जग ध्यावै रघुनन्दन को रघुवर करैं भरतको याद॥
रघुवर लछिमन भरत शत्रुहन चहु ज्यहि भजैं छांड़िकै बाद ३
जो ज्यहि भावै सो त्यहि ध्यावै आवै सबै आपने काज॥
क्यहू न ध्यावे सो दुखपावै औ बड़ होवै तासु अकाज ४
हमरे सर्वोपरि एकै हैं स्वामी रामचन्द्र महराज॥
तिन्हैं बिसारैं तो दुखपावैं यह मन सदा हमारे राज ५
छूटि सुमिरनी गै रघुवर के सुनिये नरवर केर हवाल॥
ब्याह बखानै उदयसिंह का लड़िहैं बड़े बड़े नरपाल ६
अथ कथाप्रसंग॥
नरपति राजा नरवरगढ़ का भारी लाग राजदरबार॥
बैठे क्षत्री अलबेला तहँ एकते एक शूर सरदार १
नरपति बोला मकरन्दा ते तुम सुत मानो कही हमार॥
बड़े लड़ैया मोहबेवाले बारी भली कीन तलवार २
काह तुम्हारे अब मनमाँ है हमते साँच देउ बतलाय॥