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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७३

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आल्हखण्ड। २७०

रारि बचैहौ की लड़िजैहौ तैसो जल्दी करी उपाय ३
इतना सुनिकै मकरँद बोला दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
हुकुम जो पावैं महराजा को सबको बांधि दिखावैं आय ४
सुनिकै बातैं मकरन्दा की राजै हुकुम दीन फरमाय॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो पुरमें डौंड़ी दीन पिटाय ५
हुकुम पायकै मकरन्दा का फौजै होन लगीं तय्यार॥
रण की मौहरि बाजन लागी रणका होन लाग ब्यवहार ६
बाजे डंका अहतंका के क्षत्री सबै भये हुशियार॥
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ७
पहिल नगाड़ा में जिनबन्दी दुसरे बांधि लीन हथियार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन क्षत्री सबै भये तय्यार ८
मारु मारु करि मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल॥
बैठ्यो घोड़ा पर मकरन्दा मनमें सुमिरि यशोदालाल ९
कूच करायो नरवरगढ़ ते पहुँच्यो समरभूमि मैदान॥
गर्दा दीख्यो आसमान में बोल्यो यहां बीर मलखान १०
यहु दल आवतहै नरपति का गर्दा छाय रही असमान॥
सँभरो सँभरो ओ रजपूतौ हमरे करो बचन अब कान ११
इतना सुनिकै मोहबेवाले तुरतै बाँधि लीन हथियार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बॉके घोड़न भे असवार १२
बड़ि बड़ि तोपैं अष्टधातु की सो चरखिन में दीन चढ़ाय॥
दुहूँ ओर ते गोला छूटे हाहाकार शब्द गा छाय १३
गोला लागै ज्यहि क्षत्री के आधे सरग लिहे मड़राय॥
गोला लागै ज्यहि घोड़े के धुनकततूलसरिसउड़िजाय १४
गोला लागै ज्यहि हाथी के मानो गिरा धौरहर आय॥