पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४ आल्हखण्ड ! २७२ नदी नेवारा जस नर ख्याले तेसे काक केक गतिभाय-२७ को गति वरणे समरभूमि के हमरे बूत कही ना जाय। जितने कायर हैं फौजन में तर लोथिन के रहे लुकाय २८ हेला आवै जब हाथिन का तब विन मरे मौत लैजाय ॥ छाती धड़के रण कायर के सायरखुशीहोयअधिकाय २६ परम पियारी जिनके नारी आरी भये समर में आय ॥ कीरति प्यारी जिन क्षत्रिन के सम्मुख सह खड्ग के घाय ३० मकरंद ठाकुर मलखाने का · परिगा समर वरोवरि आय ॥ दोऊ मार दोउ ललकारें दोऊ लेवें चार बचाय ३१ मकरंद बोले मलखाने ते ठाकुर लौटि धामको जाय ॥ चार हमारी ते वचिहै ना नाहक फँसे समर में आय ३२ सुनिकै वात मकरन्दा · की वोला बच्छराज को लाल ॥ बहिनि वियाहै तो वचिजइहै नाही परे काल के गाल ३३ ज्यहिकी विटिया सुन्दरि द्याखै त्यहिपर चढ़े वीर मलखान ।। विना वियाहे घर नहिं जावै तजिकै कों समर मैदान ३४ इतना सुनते मकरॅदठाकुर तुरतै बैंचि लीनि तलवार ।। ऐचिकै मारा मलखाने को मलखे लीन दालपर बार ३५ सुमिरि भवानी शिवशङ्करको मारी साँग वीरमलखान ।। मूड पिसानी सो घोड़ा के घोड़ा भाग्यो लिहे परान २६ सवैया॥ भागिगयो गोल्प, त अरु जायके धाममें वेगि विराजा। काठक घोड़ औ सेल शनीचर वाण अजीत लियोजय काजा) मालिनि धाम गयो फिरि धाय बलाय चल्यो रण साजिसमाजा। मापनयो रपसेतन में ललिते मकरन्द बली फिरि गाजा ३० ।