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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७७

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आल्हखण्ड। २७४

ऊदन मारैं तलवारी सों बेंदुल हनैं टाप के घाय ४८
यकइस हाथी असवारन को ऊदन दीन्ह्यो तुरत सुलाय॥
ऊदन ठाकुर के मुर्चापर क्वउ रजपूत न रोंकै पायँ ४९
देखि बीरता बघऊदन की मकरँद दौरा गुर्ज उठाय॥
यह गति दीख्यो मकरन्दा कै हिरियाबोली शीशनवाय ५०
हमका लाये तुम काहे को जो अब दौरे गुर्ज उठाय॥
जादू डारों बङ्गाले की इनकी कैद लेउ करवाय ५१
इतना कहिकै हिरिया मालिनि औ ऊदनपर डरा मशान॥
मकरँद ठाकुर त्यहि समया में तुरतै बांधि लीन तहँ आन ५२
गा हरकारा तव आल्हा ढिग औ रण हाल बतावा जाय॥
आल्हा बोले तब देबा ते तुम इन्दलका लवो बुलाय ५३
इतना सुनतै देबा ठाकुर अपने घोड़ भयो असवार॥
माथ नवायो सो आल्हा को अपनी लई ढाल तलवार ५४
देबा चलिभा ह्याँ तम्बू ते दशहरिपुरै पहूँचा जाय॥
जीति के डंका बाजन लागे मकरँद कूच दीन करवाय ५५
बड़ी खुशाली नरपति कीन्ह्यो हिरिये द्रब्यदियो अधिकाय॥
देबा भेंटा ह्याँ सुनवाँ का सवियाँहालगयोफिरिगाय ५६
देबा भेंटा फिरि द्यावलि को दोऊ चरणन शीशनवाय॥
कही हकीकति सब नरवर की देवलि गिरी मूर्च्छा खाय ५७
कैदी ह्वैगे बघऊदन जो पकरे गये सबै सरदार॥
मोहिंअभागिनि के बेड़ा को अवधौं कौन लगावै पार ५८
इतना देवलि के कहतै खन इन्दल तहाँ पहूँचाआय॥
हाथ जोरिकै सो देबा के बोल्यो चरणनशीशनवाय५९
कहौ हकीकति तुम चाचा की नरखर हाल देउ बतलाय॥