पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७८

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उदयसिंहका विवाह । २७५ देवा बोला तह इन्दल ते बेटा कही बूत ना जाय ६० हिरिया मालिनि की जादूते पकरे गये उदयसिंहराय॥ जे व्यवहारी तुम्हरे दिशि के मकरंद कैद लीन करवाय ६१ घोड़ी जखमी मै मलखे के आल्हा पठयो तुम्हें बुलाय॥ इतना सुनिकै इन्दल बोले सर्वकी कैद देउँ छुड़वाय ६२ हुकुम जो पावों महतारी को दादा चरण विलोकों जाय । काह हकीकति है मालिनि के सम्मुख लहै हमारे आय ६३ इतना सुनिकै सुनवाँ बोली बेटै बार बार समुझाय ।। पिता आज्ञा रघुनन्दन करि चौदह वर्ष रहे बनजाय ६४ कौन सिखाई सुत अपने को तुम ना करो पिताके बैन । कही न मानें पितु अपने की तेई गिरौं नरकके ऐन ६५ जैसे देवता पति नारी को तैसे पिता पुत्र को देव ।। नीके जाने धर्म शास्त्र जे ते नित करें पिता की सेव ६६ तेई सपूते नर बाजत हैं जिनके पिता बचन विश्वाश ।। कौन भरोसा नरदेही का कलियुगकौनजियनकोजारा २७ पिताहितेपी जग सब कोहै अपनो हुनर देय बतलाय ॥ रहै लालसा पितु उरमाही हमसों पुत्रहोय अधिकाय ६८ जे नहिं मानें पितु अपने को तेई नीच जगत में भाय ॥ येई कुलीने अकुलीने के लक्षण साफपरें दिखलाय ६६ निन्दक हो रघुनन्दन को तासों कौन हमारो नात ।। नेही गेही नरदेही का जगमें साँचो राम लखात ७० इतना सुनिकै इन्दलठाकुर देवी चरण शरण गा धाय ।। विनय सुनाई भल देवी को पढ़िपदिवेदचनकोभाय ७१ चरंकुहिम तव मठिया ते इन्दल बोल्यो शीश नवाय॥