पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२७९

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आल्हखण्डे 1२७६ विजय हमारी नरवर होवे तुम सुनिलेउ शारदामाय ७२ एवमस्तु भा फिरि मठिया माँ इन्दल चलिभा शीशनवाय॥ आयसु माँग्यो फिरि माता ते सुनवाँलीन्यो हृदयलगाय ७३ यन्त्र वांधिक भुजदण्डन में मस्तक रुचना दियोलगाय ।। पढ़ि पढ़ि रक्षाके मन्त्रन को भूली जादू दीन बताय ७४ घोड़ करिलिया आल्हावाला इन्दल तुरत लीन कसवाय ।। विदा मांगिकै महतारी सौं देवा साथ चले हरषाय ७५ देवी चलिकै मठभीतर सों नखर गढ़े पहूंची पाय ।। ॥ काठक घोड़ा वाण अजीता लीन्ह्योसेल शनीचरजाय ७६ किरपा करिके जगदम्बा तहँ चेतन कीन फौजको जाय ॥ इन्दल पहुंचे जब तम्बू में आल्हालीन्यो गोदविठाय७७ चूम्पो चाट्यो हृदय लगायो औ सब दीन्ह्यो कथासुनाय ।। इन्दल वोल्यो तब आल्हा ते दादा सत्य देय बतलाय ७८ करो तयारी अब नखर की सवकी कैद लेयँ छुड़वाय ॥ ठाढो हाथी पचशब्दा था आल्हातुरत लीन सजवाय७९ बैठे हाथी आल्हाठाकुर इन्दल तुरत भये तय्यार ।। थेठ कबुतरी पर मलखाने देवा भयो घोड़ असवार ८० मारु मारु करि मौहरि वाजी वाजी हाव हाव करनाल ।। खर खर खर खर के रथ दारे ख्वा चले पवनकी चाल ८१ कूचकराये आल्हा अकुर नरवरगढ़े चले ततकाल ।। फउ कर घोड़ा हिरनवाल पर कर कउ चलें मोरकी चाल ८२ कउ कउ घोड़ा हंस चालपर कउ कउ सरपट रहे भगाय ।। कदम चालपर कोऊ घोड़ा केहू टाप न परै सुनाय ८३ या विधि वेला अलवेला सत्र पहुँचे समरभूमि में जाय। . ।