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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८

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संयोगिनिस्वयम्बर।

चौकी परिगै तहँ सोने की तापर बैठ राम को ध्याय॥
मधुर मिठाई औ मेवा कछु भोजनकीनबहुतसुखपाय १०७
खबरि सुनाई सब रानी को जो चढ़िअवा पिथौराराय॥
सुनिकै बातैं महराजा की रानी बोली शीश नबाय १०८
तुम ना भाग्यो समरभूमि ते चहुतन धजीधजी उड़िजाय॥
कोउ अमरौती ना खावा है ना क्वउआवा पीठिमढ़ाय १०९
कालके हाथ कमान चढ़ी है ना कोउ बची बूढ़ ना ज्वान॥
यकदिन मरना है सबही को स्वामीकरो वचन परमान ११०
जो तुम भगिहौ समरभूमिते बूड़ी तीनिसाखिको नाम॥
लड़िकै मरिहौ जो सम्मुख में जैहौ तुरत राम के धाम १११
वचिक अइहाँ जो कनउज में पैहौ सदा नृपन में मान॥
जीवन ताही को भलजानो जाकीरहै जगतमें शान ११२
ऐसी बातैं रानी कहिकै पलँगापरै गई अलसाय॥
राजौ सोये फिरि महलन में औअतिबिक्दनींदकोपाय ११३
खेत छुटिगो दिननायक सों झंडागड़ा निशा को आंय॥
तारागण सब चमकन लागे चोरनखुशीभई अधिकाय ११४
होई लड़ाई अब आगे जस तब तस देबे गाय सुनाय॥
बैठो यारो अब दमलेवो सीताराम चरणको ध्याय ११५

इति श्रीलखनऊ निवासि (सी,आई, ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामपदेशान्तर्गत पॅडरीकलां
निवासि मिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
पृथुइराज की चढ़ाई वणनंनाम द्वितीयस्तरंगः २॥