पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८

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संयोगिनिस्त्रयम्बर। २३ चौकी परिगे तहँ सोने की तापर बैठ राम को ध्याय ।। मधुर मिठाई औ मेवा कछु भोजनकीनबहुतसुखपाय १०७ खबरि सुनाई सब रानी को जो चदिवा पिथौराराय ॥ सुनिकै वात महराजा की रानी वोली शीश नवाय १०८ तुम ना भाग्यो समरभूमि ले चहुतन धजीवजी उडिजाय ।। कोउ अमरोंती ना खावा है ना कउआवा पीठिमदाय १०९ कालके हाथ कमान चढ़ी है ना कोउ वची वूढ़ ना ज्यान ।। यकदिन मरना है सवही को स्वामीकरो वचन परमान ११० जो तुम भगिहौ समरभूमिते बूड़ी तीनिसाखिको नाम ।। लड़िक मरिहौ जो सम्मुख में हो तुरत राम के धाम १११ वचिक अइहाँ जो कनउज में पैहो सदा नृपन में मान । जीवन ताही को भलजानो जाकीरहै जगतमें शान ११२ ऐसी बातें रानी कहिकै पलँगापरै गई अलसाय ।। राजौ सोये फिरि महलन में औअतिविदनींदकोपाय११३ खेत छुटिगो दिननायक सों झंडागड़ा निशा को प्राय ॥ तारागण सब चमकन लागे चोरनखुशीभई अधिकाय ११४ होई लड़ाई अब आगे जस तब तस देवे गाय सुनाय ।। बैठो यारो अव दमलेवो सीताराम चरणको ध्याय ११५ इति श्रीलखनऊ निवासि (सी,आई, ई ) मुंशी नवलकिशोरात्मन बाबू प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामपदेशान्तर्गत पॅडरीकलां निवासि मिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनु पं० ललितामसादकत पृथुइराज की चदाई वणननाम द्वितीयस्तरंगः २॥