पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१० 'आल्हखण्ड । २७८ मुण्डन केरे मुड़ चौरा मे ओ रुण्डनके लगे पहार ६६ बड़ी लड़ाई भै नरवर में मकरंद इन्दल के मैदान ।। । बड़े लडैया दूनों ठाकुर रणमाँ करें घोर घमसान ६७ मकरंद बोला तहँ हिरिया ते यहिपर छाँडो घोर मशान ॥ इतना सुनते इन्दल ठाकुर हिरिया पास पहूँचा ज्वान ६८ पकार के जूरात्यहि हिरियाको इन्दल काटिलीन ततकाल ॥ जादू झूठी भइँ हिरिया की तुरतै बैंगै हाल विहाल SE देखि दुर्दशा यह हिरिया के मकरंद बैंचि लीन तलवार ।। ऐचिके मारा सो इन्दल के इन्दल लीन ढालपर वार १०० बचा दुतरवा आल्हावाला त्यहिका राखिलीन भगवान ।। औ ललकारा मकरन्दा को. मामा मौत आपनी जान १०१ दाल कि औझरि इन्दलमारा मकरंद गिरा सूरछाखाय ।। उतरिके घोड़ी ते मलखाने तुरतै मुशकलीन वधवाय १०२ मकरंद बँधिगे समरभूमि में भगिगे सबै सिपाही ज्वान॥ कोउन रहिगात्यहि समया में जो क्षण एक कर मैदान १०३ कूच करायो आल्हा ठाकुर तम्बुन फेरि पहूँचे आय ।। खवरि पाय के नरपति राजा तुरतै गयो सनाकाखाय १०४ कळू न सूझी तव नरपति को अपने मंत्री लये बुलाय ।। मंत्र पूँचिकै तिन मंत्रिन सों आल्हा पास पहूँचे आय १०५ हाथ जोरिक नरपति बोले मानो कही बनाफरराय ॥ कैद छुड़ानो मुन हमरे की अपने शूर लेउ छुड़वाय १०६ बेटी आहे हम ऊदन को सुख सों लौटि मोहोवे जाउ ॥ दगा जो राखें तुम्हरे सँग मॉ सरपति कहो हमारोनाउँ १०७ मुनि बात ये नरपति की आल्हा मकरंद दीन छुड़ाय । . !